Monday, September 17, 2012

Antardwand - Rishish Dubey


अंतर्द्वंद 

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इस छोर से, उस छोर से
हर ओर ने किसी डोर से
बाँध लिया है चंचल मन
इधर जाऊं की उधर जाऊं
जाने ये कैसा मकडजाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

है राम की या इस्लाम की
जाने किसके नाम की
है धरा और किसके हम
मंदिर जाऊं या मस्जिद जाऊं
जाने ये कैसा धरमजाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

विज्ञानं में और ध्यान में
स्वाभिमान में और अपमान में
है अंतर क्या बड़ी उलझन
ये क्यूँ वो क्यूँ नहीं
जाने ये कैसा बवाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

है भूत क्या और भविष्य क्या
परोक्ष क्या, प्रत्यक्ष क्या
है नियति क्या, क्या जीवन
कल हो चूका या कल होगा
जाने काल की कैसी चाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

क्यूँ ख़ुशी और अश्रु में
जीवन में और म्रत्यु में
भेद करते हैं अपन
क्यूँ जियूं, क्यूँ ना मरुँ
जाने ये कैसा सवाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

-- ऋषीश दुबे 'राही'
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