Friday, October 25, 2013

Woh nib wale pen - Mamta Sharma

''वो निब्वाले पेन''
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अचानक मुझे यादआये हैं वोदिन जब चलतेथे निब वालेपेन !


मैं रोज हीघिसती थी स्याहीसे लिखती थी,
पेन की स्याहीके धब्बे मैंगिनती थी।

वो झगडे जोछोटी सी निबसे ही होतेथे,
वो लम्हे जब हमएक निब कोभी रोते थे।

वो दिन जबपरीक्षा में स्याहीना होती थी,
वो दिन जबहमारी लड़ाई नाहोती थी।

वो बचपन केदिन जब थींदोपहर लम्बी,
वो दिन जबसहेली की चोटी  हीलम्बी।

वो दिन जबकभी हम छीनके खाते थे,
झड बेरी केबेर या कटारेचुराते थे।

वो दिन जबसखी से जोबातें थीं होती,
कभी भी समयकम था, जोरातें भी होतीं।

हम संग हीबिताते ये पूरीही जिन्दगी,
कहाँ है वोमेरी पुरानी सीजिन्दगी।

जब कुछ हीरुपये मुझ कोलगते थे ज्यादा,
जब थोड़े में भीथा मस्ती सेगुजारा।

मुझे ला केदो ना एकबार कोई यारों,

निब वाले वोधब्बे फिर सेमुझ पे डालो।

- ममता शर्मा

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