"बेचारी हवा"
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हवा सुहानी चली बेचारीतो घबराये पत्ते,
होते पीले, लाल, सुनहरीज्यों ज्यों दिनहैं चढते
जैसे ही तुमआयीं रानी हवाहमें यूं लागा,
जो था जीवनबचा - खुचा वोभी झोंका लेभागा
उधर खबर सुनमलय बसंती आतीहै इस ओर
छोटे पौधे घबराएव डालियों केदिल चोर .
आती होगी अभीवो भैया, हम होंगे बसतीर ,
ये जो पुरवामस्तानी है येदेती है पीड
चिड़िया रानी भीबोली उस अल्ल्हड़मस्तानी से,
जरा ठहर तोहवा , उड़ा घरतेरी शैतानी से
चली हवा तोबने कई मुँह, वो भी कहाँसुनती है
धूल की चुनरी सर परओढ़े हवा तोबस उडती है.
मैं लाती हूँनयी बहारें , मैंलाती हूँ कोपल,
अगर नहीं सीखाहै तुमने, ठहरोसीखो दो पल।
छोटे पौधों अब तुमबनो सुदृढ़, नरहो सुकुमार ,
शाखाओं तुम झुकनासीखो ,अकड़ो नहर बार .
सुनो सुनो चिड़ियामहारानी, जब सेमैं हूँ आई,
वर्षा ,जाड़े ,पाले कीमुश्किल है दूरभगाई।
अब भी गरतुम नहीं होखुश तो, जराकरो तुम गौर,
मेरे आने सेहर सूँ रंग, हो जाता हैकुछ और।
थोड़े दिन कोआती हूँ, मौसमकरती रंगीन ,
छोड़ो अपनी -अपनी ढपली, मेरी सुन लो बीन।- - ममता शर्मा - -
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