Friday, October 25, 2013

Dharm se shikayat - Niraj Kumar "Neer"

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धर्म से शिकायत
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क्या खाने कोचखा
खाने की शिकायतकरने से पहले?
क्या परखा उसकेगुण दोषों कोया
यूँ  हींचाँद टेढ़ा करलिया ?
ये आदत हैतुम्हारी,
अबाध स्वतंत्रता से उपजी
एक बुरी आदत.
लंबी गुलामी का असरहो गया है
तुम्हारे मस्तिष्क पर.
तुम किनारे पर बैठ
समुन्दर को छिछलाबताते हो .
किनारे पर जमागन्दगी को देख
सागर की प्रकृतिबताते हो.
ये गन्दगी सागर कादोष नहीं
यह दोष हैतुम्हारा.
जो समझते हैं स्वयंको ज्ञानी
अपने सीमित ज्ञान केसाथ.
क्या पन्ने पलटे उपनिषद, गीता के कभी
कभी कोशिश की तत्वजानने की.
चार पन्ने की कोईकिताब पढ़ी और
सबको झूठा कहदिया.
तुम क्यों नहीं तलाशतेकोई और सागर,
लेकिन वहाँ आज़ादीनहीं ||

- नीरज कुमार "नीर "
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