Friday, October 25, 2013

Pukaar - Kusum

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पुकार 
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सुनों देश के लाल ये माँ तुम्हे पुकारती,
जुल्मो से दबी हुई ऐ दर्द से कराहती,
कब तक सोओगे अब तो तोड़ दो इस निद्रा को,
जागो और देखो कैसे रौंद रहे है इस माँ के सीने को,
किसी ने छोड़ा धर्म, तो किसी ने संस्कार को,
कोई तोड़े देश को तो कोई माँ के प्यार को,
कोई माँ की आबरू को पैसों में है तोलता,
कोई सिंदूर पोछता तो कोई आंचल को नोचता,
कोई लूटता खसोटता कोई खून चूसता,
आबरू लुट रही तेरी माँ की देख
क्यों खून पानी हो गया क्यों आता नहीं उसमे उबाल,
क्यों गहरी नींद सोया है मेरे लाल,
क्या बात है जो तू खामोश है,
माँ की आत्मा झकझोरती और धिक्कारती
उठा ले क्रांति की मशाल ये माँ तुम्हे पुकारती
सुनो सुनो सुनो ये माँ तुम्हे पुकारती,

- कुसुम 
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