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अन्धकार और मैं
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मैं जब से अंधेरों में चलने लगा हूँ
उजालो से डरने लगा हूँ
जब अँधेरे ने मुझे पहली दफा छुआ
मैं डरा, सहमा
अरे ये ! क्या हुआ
मेरी आँखे चुप थी जुबा बेजुबा बन गई
रास्ते गुम थे,
मंजिल पर पहुंचना सज़ा बन गई
सन्नाटा एक दम सन्नाटा ...........
अचानक एक पल ने मुझे,
अपना मतलब सिखा दिया
जब मुझे रूबरू अपने दिल से करा दिया
रास्ते बीहड़ो से अपने आप खुल गए
उस दिन जाना,
मेरे कुछ बिछड़े पल मुझसे कैसे जुड़ गए
और सपनो की बागडोर उन अंधेरो के हवाले कर गए।
-संजय किरार
अन्धकार और मैं
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मैं जब से अंधेरों में चलने लगा हूँ
उजालो से डरने लगा हूँ
जब अँधेरे ने मुझे पहली दफा छुआ
मैं डरा, सहमा
अरे ये ! क्या हुआ
मेरी आँखे चुप थी जुबा बेजुबा बन गई
रास्ते गुम थे,
मंजिल पर पहुंचना सज़ा बन गई
सन्नाटा एक दम सन्नाटा ...........
अचानक एक पल ने मुझे,
अपना मतलब सिखा दिया
जब मुझे रूबरू अपने दिल से करा दिया
रास्ते बीहड़ो से अपने आप खुल गए
उस दिन जाना,
मेरे कुछ बिछड़े पल मुझसे कैसे जुड़ गए
और सपनो की बागडोर उन अंधेरो के हवाले कर गए।
-संजय किरार
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