धन्यवाद
--------------------------------------
पञ्च तत्वों को देहमें गढ़ कर,
उसमें देते प्राणको धर ,
लीला में हमकोरचते ।
धन्यवाद स्वीकार कीजिये ।
माटी के तनमें अपनी,
छवि कोदिखला- दिखला कर,
हम जैसों के मनको छलते ।
धन्यवाद स्वीकार कीजिये ।
कण कण मेंफैला ज्योति को,
अनहत - आहत मेंरमते ,
मंद - मंद उसपर हँसते ।
धन्यवाद स्वीकार कीजिये ।
ओर - छोर नपता किसी को,
राह सुगम याअगम रस्ते ,
कस्तूरी बन, मनबसते ।
धन्यवाद स्वीकार कीजिय ।
वाष्प में ढलमेघों में बदल,
हिम बन नदीझरनों में चल,
सागर वत हमकोधरते ।
धन्यवाद स्वीकार कीजिये ।
- ममता शर्मा
--------------------------------------
No comments:
Post a Comment