फासले
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कल फिर आई थी तुम ख्वाब में,
कोहरे से ढकी किसी सुबह में,
ओस की बूंदों सी थी तुम या सूर्य की किरण सी,
पल्लवी सी थी तुम या किसी परी सी,
वही मुस्कान थी चेहरे पर आँखों में फिर चमक थी,
खामोश मैं था और तुम भी चुप थी,
बातें तो बहुत थी पर शब्द कम थे,
दूर हम नहीं थे पर फासले बहुत थे.
देख कर तुम्हे, मैं खुश भी बहुत था,
दिल में उमंग थी आँखों में फिर नशा था,
कुछ दूर मैं चला था पर साथ तुम नहीं थे,
दूर हम नहीं थे पर फासले बहुत थे.....
~~ अवनीश गहोई ~~
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ye bhi achchhi h...:-)
ReplyDeletegud work...
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