Sunday, June 24, 2012

Yaadon Bhari Wo Library - Adarsh Tiwary

यादों भरी वो लाइब्ररी.. 
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 आज दिखी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जाया करते थे,
ज़िन्दगी के पन्नो में बातें उखेरा करते थे |
आज उन यादो से जुड़ने का एक और द्वार मिल गया ,
और मिला वो आधा प्यार, जो कभी यादों में था दब गया |

किताबों से भरी हर वो तख़्त निहारा करती थी,
जब तुम  उस कोने से मुझे पुकारा करती थी |
सन्नाटे मे हसने का तुम्हारा,वो एहसास मुझे फिर मिल गया, 
हर उस नज़ारे का मुझे,फिर से नज़ारा मिल गया |

  याद आई वो मेज़ जहा हम तुम संग बैठा करते थे,
मिलती थी हमारी नज़रे ,घंटो बातें किया करते थे |
वहा जाना तो बस, जाना पहचाना सा एक बहाना था,
वक्त की खाई मे भी,तुमसे मिलने जो आना था |

रोज़ नए अध्याय हम अपने किस्से में जोड़ा करते थे, 
 तुम कहती थी, मैं सुनता था और ये दिन बीता करते थे |
 किताबों के पन्नो सा,जहां हम एक दूजे को पढ़ा करते थे ,
याद आ गयी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जया करते थे।   
 
~~~ आदर्श तिवारी ~~~
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Friday, June 22, 2012

Kya banu - Dr.Pawan Kumar "Bharti"

क्या बनू ...?
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~~~ डॉ पवन कुमार "भारती" ~~~
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Thursday, June 21, 2012

Hindustan khatarein me - Dr. Pawan Kr "Bharti"

हिंदुस्तान खतरें में
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~~~ डॉ पवन कुमार " भारती " ~~~
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Asha - Dr. Pawan Kr Bharti

आशा 
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~~~ डाँ. पवन कुमार भारती ~~~
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Wednesday, June 20, 2012

Mera anokha ghoda - Mamta Sharma

मेरा अनोखा घोड़ा
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मैं चढ़ी किताब के घोड़े पे ,
तब पंख फैलाए भगोड़े  ने

ले चली मुझे एक नई तरफ ,
जिसमें थे सत्य के छिपे हरफ

कहीं शून्य कहीं प्राचीन इतिहास ,
कहीं काव्य कहीं साहित्य के साज़

कहीं उड़े पंछी ,कहीं भागे हिरन
कहीं दूर आकाश से झरी किरण ,

कभी सूर्य चन्द्र उल्काएं मिलीं ,
कभी तेज पवन हो मस्त चली ,

कभी बच्चे शोर मचाते मिले ,
तो बूढ़े सस्वर गाते चले ,

कभी मिली प्रजातियों की पहचान ,
कभी जल कभी हिम कभी मिले प्रपात,

कभी उद्गम किसी नदिया का मिला ,
कभी संगम किसी सागर से मिला ,

कभी मिले महर्षि बड़े बड़े ,
 हुए शिष्य भी जिनके बहुत बड़े,

मुझे मिले कई प्रेरक प्रसंग ,
जिनमें बसते थे आज के रंग,

एक जगह मिले बापू थे खड़े ,
और पास मैं ही डाकू थे खड़े ,

 मिला ज्ञान जिसे समझी ही नहीं,
 मिल भान जिसे भूली ही नहीं ,

कभी मिले कई अपने से लोग ,
लिए मानवता के गुण हर प्रति और ,

कभी कडवी कुछ सच्चाई थी ,
हर सूं फैली सी लड़ाई थी

किसी युद्धकी भीषण आग मिली
कहीं शांति की सेन्यअपार मिली

कभी दुःख सुख की ललकार भी थी ,
कल आज की कहीं तकरार भी थी ,

उत्तर दक्षिण पश्चिम पूरब ,
मुझे प्यारा ये घोडा हरदम ,

सब मिल सकता इस घोड़े संग
मैं हर पल चाहूँ इसका संग

~~ ममता शर्मा ~~
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Sunday, June 17, 2012

Premi Ke Notes - Akhter Ali

प्रेमी के नोट्स
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नास्तिक है वो सब
जो खड़े है
प्रेम के विरोध में !
प्रेम से सहमत न होना
स्वय से असहमति है !
जो खुद का नहीं
वो खुदा का नहीं !
रोजे नमाज
पूजा अर्चना
सब दिखावा है
ढोंग है
उनके लिए जो खड़े है
प्रेम के खिलाफ !
कैसे हो स्वीकार की
किसी को प्रेम भी
अस्वीकार है !
सावधान
उनसे नजदीकी क्यों
जिनकी प्रेम से दूरी है !
वो टूट जायेगा
जो जुडा नहीं
जो भीगा नहीं
वो खिलेगा कैसे ?
छंद अलंकार अनुप्रास
न खोजियेगा
ये कवि के नहीं
प्रेमी के नोट्स है !

~~ अखतर  अली ~~
___________

Piche mud kar kabhi naa dekho - Anand Vishwas

पीछे मुड़ कर कभी न देखो
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पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे  ही तुम बढ़ते जाना।
उज्ज्वल "कल" है तुम्हें बनाना,वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।

संघर्ष आज तुमको करना है,
मेहनत में तुमको खपना है।
दिन और रात तुम्हारे अपने,
कठिन परिश्रम में तपना है।
फौलादी आशाऐं ले कर, तुम  लक्ष्य प्राप्ति करते जाना।
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते  जाना।

इक-इक पल है बहुत कीमती,
गया समय  वापस ना आता।
रहते समय न जागे तुम तो,
जीवन भर रोना रह  जाता।
सत्य-वचन सबको खलता है,मुश्किल है सच को सुन पाना।
पीछे मुड़  कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते  जाना।

बीहड़   बीयावान  डगर  पर,
कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।
इस  छलिया  माया नगरी में,
अपने  ही  प्रतिकूल  मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना।
पीछे मुड़ कर कभी न  देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

कैसे  ये  होते   हैं   अपने,
जो सपनों  को तोड़ा करते हैं।
मुश्किल में हों आप अगर तो,
झटपट   मुँह   मोड़ा करते हैं।
एक  ईश जो साथ तुम्हारे, उसके तुम हो कर रह जाना।
पीछे मुड़  कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
 
~~  आनन्द विश्वास ~~
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Koi baat chale - Ashish Pant

कोई बात चले ...
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मद्धिम सूरज, संतरी आकाश, उजले बादल
उठती लहर, ढलती शाम, हल्का चाँद
शीतल पवन, शांत साहिल, ढीली रेत और मूंगफली - बस
फिर हम बैठें तुम बैठो कोई बात चले

काली रात, जगमगाता शहर, उजली राहें
भागते वाहन, गलियां रोशन, जर्रा रोशन,
ऊंची मीनार वीरान छत ढेर से तारे और चने के दाने - बस
फिर हम बैठें तुम बैठो कोई बात चले

पहली बारिश, सौंधी मिट्टी, टिन की छत
ठंडा फर्श, खुली खिड़की, हल्के छींटे
जलती अंगीठी, उठता धुआं और गरम भुट्टा - बस
फिर हम बैठें तुम बैठो कोई बात चले

भागती ट्रेन, लम्बा सफ़र, साफ़ आसमान,
झिलमिलाती नदी, लम्बा पुल, दूर पहाड़,
खेत खलिहान, पकती फसल और दाल मोठ - बस
फिर हम बैठें तुम बैठो कोई बात चले

चलती घडी, रुका लम्हा, गहरी सांस
कांपते हौंठ, बढती धड़कन, गूँजता सन्नाटा
खामोश जुबान, बोलती निगाह और.... तृप्ति - बस
फिर हम बैठें तुम बैठो कोई बात चले...

~~ आशीष पन्त ~~
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Maa - Mukul Sharma

माँ
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जब कभी मैं..माँ के विषय में..
लिखने का विचार करता हूँ...तो जैसे...
शब्द भी डरने लगते है...
अक्षर सब क्षरने लगते है....
और कहते है मुझसे...कि...
अस्तित्व का वर्णन हो सकता है...
पर माँ को... कौन वर्णित कर सकता है...?
संतो-अरिहंतो की दुआ होती है...
बुद्धो की जैसे पनाह होती है....
पूछे जब कोई... मैं क्या उपमा दूं....?
माँ तो बस.....माँ होती है.....

याद है वो दिन...जब मेरे होश में...
माँ ने मुझे पहली बार चूमा था....
स्तब्ध थी धडकने....
विराम लगा था विचारों पे...जैसे...
बाकी बस तारो को छूना था....
मेरे थोड़े से दुःख पे.... वो पलके भिगो ले...
पर खुद के लिए... वो कहाँ रोती है.....?
माँ तो बस......

मौन का संगीत है.....माँ....
खुदा की जैसे प्रीत है...माँ...
बरसात में मिटटी की खुशबु है...माँ...
बस याद करो...हर सू है...माँ...
चैतन्य-मीरा का नृत्य है...माँ...
इस देह में जैसे...वो सत्य है...माँ...
हम पत्ते तो जैसे डाली है...माँ...
पीरो की कब्बाली है...माँ...
अस्तित्व में है उसीका..अनुसरण...
कुछ ऐसी ही ..निराली है...माँ...
जब रख दे वो हाथ सर पे....
जैसे जादू सा कर देती है....
माँ तो बस.........
होती ही ऐसी है ।।

~~ मुकुल शर्मा ~~ 
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Sangam - Ankit Jain

संगम
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अंतर्मन में उठा एक प्रश्न : क्या है संगम?
जग में कैसे है व्याप्त अनेक रूपों में संगम?
क्या है महत्व उसका जो है अजित अमी संगम?
प्रकृत रूप में सर्वोपरि क्यों है यह अटल संगम?

संपूर्ण संसार का कर्णधार है यह विस्तृत गगन,
संपूर्ण संसार को जीवन देते कर्मठ धरा व पवन,
वह अद्वितीय, अकल्पनीय सौंदर्य होता है अनुपम,
क्षितिज पर होता जब इन सब तत्वों का संगम।

विशाल हिमालय से होता गंगा यमुना का उद्गम,
सरस्वती जन्म लेती जिससे वह है मानसरोवर चरम,
इन तीनों सखियों का मिलन लगता थल में अगम,
परन्तु लोचन तृप्त होते देख प्रयाग में इनका संगम।

दो तरुओं के गले मिलने से बनता एक कानन,
दो नभचरों का परस्पर प्रेम दर्शाता उनका मिलन,
इसी प्रकार सृष्टि के तत्वों का मेल होता सक्षम,
नैसर्गिक रूप में हमारे चारों ओर विराजमान है संगम।

माता के गर्भ में शिशु मन होता है अति चंचल,
व्याकुल होता है वह जीवन पाने को हर पल,
आत्मीय हर्ष रूपी रुदन से सम्बंधित होता उसका जन्म,
अपूर्व प्रसन्नता युक्त होता भव से उसका संगम।

जीवन काल में मनुष्य का उद्देश्य होता ज्ञान अर्जन,
विद्यार्थी सफल होने के लिए करता लाखों प्रयत्न,
अनुभव के संग वह संग्रह करता अगिनत आगम,
धी के सिन्धु से छलकता है कामयाबी से उसका संगम।

इसी प्रकार सुख-दुःख से गुजर हम करते कार्य निष्पादन,
सद्गुणों के पथ पर चलते हम करते ईश का कोटि कोटि नमन,
जीवन काल के चरम पर जब लेकर आते बुलावा यम,
कितना शांतिपूर्ण होता है भू के साथ मनुष्य का संगम।

अंतर्मन में प्रश्न कचोट रहा : क्या है संगम?
जवाब अब मिला : प्रकृति का सौन्दर्य है संगम,
संपूर्ण मानव जीवन का आधार है संगम,
सर्वव्यापी इश्वर की सर्वोत्तम रचना है संगम।

~~ अंकित जैन ~~ 
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Ek naya sehar - Ankit Jain

एक नया सहर 
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जीवन में विफलताओं का दौर देख घबराना नहीं,
कर सफलता की ओर प्रस्थान, रुकना – थकना कहीं नहीं,
अपने मकसद में तू उत्साह का नया संचार कर,
कि हर स्याह रात् के बाद आएगा एक नया सहर.

मन का विकास कर, रख सदा शुद्ध आचरण,
समाज राष्ट्र के कल्याण के लिए कर अपना जीवन समर्पण,
गुरुओं के चरणों में पड़ सद्गुणों को ग्रहण कर,
कि हर स्याह रात् के बाद आएगा एक नया सहर.

अगर हो तेरी राहों में हजारों मुसीबतों का आगमन,
करना तू हर ऐसे शत्रुओं का अद्वितीय साहस से  दमन,
होगा भविष्य सुनहरा राह को सुगम कर,
कि हर स्याह रात् के बाद आएगा एक नया सहर.


ध्रितराष्ट्र जैसे अपाहिजों के लिए तू बन उनका संजय,
भला करेगा उनका तो न देखेगा कभी पराजय,
विजय पथ पर आगे बढ़  उद्धार  वस्त्र पहनकर,
कि हर स्याह रात् के बाद आएगा एक नया सहर.

मुसीबतों को देख कम न पड़े कभी तेरा जोश,
किन्तु सफलता को नजदीक देख खो न देना होश,
सकारात्मक बन जी ले जीवन का हर एक प्रहर,
कि हर स्याह रात् के बाद आएगा एक नया सहर

~~ अंकित  जैन  ~~
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Shaan e Maut - Ankit R Nema

शान ऐ मौत
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 ताउम्र जलो तन्हाई की आग मे, 
 नहीं आता कोई बुझाने को.,
जरा बुझने दो साँसों की शमा,
 काफिला चलेगा पीछे फिर से आग लगाने को,

एक क़दम जमीन नहीं मिलती कदम बढ़ाने को,
थमने दो साँसे, दो गज जमीन आएगी हिस्से ख़ाक में मिलाने को ,

एक कन्धा भी नहीं हासिल, अश्क बहाने को
 गुजरेंगे जब , पीछे दौड़ेगा जमाना काँधे पर उठाने को ,

नहीं शामिल मेरे गम में कोई ,
आने दो दिन रुखसती का,
मायूस चेहरे के संग आएगा दुश्मन भी,
जनाजे पर, अश्क गिराने को

~~ अंकित आर नेमा ~~
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Tumhara chehra - Kusum


 तुम्हारा चेहरा 
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तुम्हारा चेहरा झील जैसा उसमे ये आँखे कमाल है
कभी ये चंचल हो जैसे झरना
इनकी गहराइयो में समुन्दर जैसे उसमे हो उतरना

तुम्हारी आँखे है या जादू की पुडिया
इशारों पे अपनी नाचती है दुनिया
उठती है पलके तो उगता है सूरज

विरानो को छू कर सिखा दे सवारना
सजदे में झुक जाऊ दिल मेरा चाहे
तुम्हारी ये आँखे खुदा की शक्ल है
हुम्हारा चेहरा झील जैसा उसमे ये आँखे कमाल है । 
~~ कुसुम ~~
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Kaanch ka dil hai mera - Bhupendar Kr Panchal

 काँच का दिल हैं घर मेरा
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 ~~ भूपेन्दर कुमार पांचाल ~~
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Ek arsa beet gaya sote hue - Ankita Jain

एक अरसा बीत गया सोते हुए
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एक अरसा बीत गया सोते हुए !
अब तो स्वपन निद्रा से जागो ,
इंतज़ार में है नया सबेरा तुम्हारे,
अब तो उस कुभ्कर्ण से दूर भागो !!

कुछ साल पहले
बनाया था एक संविधान,
गोरों से आज़ाद होकर,
किया प्रजातंत्र निर्माण !
फिर सोये बस ऐसे खोकर,
सब कुछ नेताओं को देकर !
माना की बासठ साल बीत गए
मगर अब भी कुछ उम्मीद बाकि है
बस एक स्वर में ही तो चिल्लाना है
कि सरकार अब भी हमारी है
तो अब सोचने समय न गंवाओ प्यारे
बस तुम दोड़ लगादो !
इंतज़ार में है नया सबेरा तुम्हारे,
अब तो उस कुभ्कर्ण से दूर भागो !!


अरे किस डर दुपकर बैठे हो,
या बस TV पर भाषण के मजे ले रहे हो !
किस ललकार से जागेगा,
पत्थर दिल तुम्हारा !
समझो उनके दर्द को,
जिन्होंने खोया है अपना सहारा !
अन्ना और कुमार सब,
लड़ रहे किसके लिए?
जो घरों में सो रहे
हाथों में रिमोट लिए !
दावा है दानव डर जायेंगे
बस एक साथ चिल्ला दो
इंतज़ार में है नया सबेरा तुम्हारे,
अब तो उस कुभ्कर्ण से दूर भागो !!

~~ अंकिता जैन ~~
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Yun hamse na ruthe zindagi - Ankita Jain

यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी
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यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी,
अभी सफ़र बहुत लम्बा है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी,
अभी राह बहुत कठिन है बाकि...
तुम न साथ हुईं तो थम जाएँगी
जो गिनी चुनी सांसें हैं बाकि...
तुम ठहरी तो रुक जाएँगी
जो कुछ पल की धड़कन हैं बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी.............................!!

अभी तो कुछ दिन पहले मैंने,
तुम्हे बहुत समझाया था...
तुम रोयीं थी तो तुमको मैंने,
प्यार से गले लगाया था...
फिर क्या बदला है आज और कल मैं,
या कल का गुस्सा ही है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी,
अभी सफ़र बहुत लम्बा है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी...............................!!

अच्छा बैठो तुम्हे याद दिलाऊँ,
बीते कल का वो एक किस्सा...
जिसमे हम तुम पास थे कितने,
खुशियाँ थीं हर पल का हिस्सा...
माना कि वो बीता कल था,
पर आने वाला कल है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी,
अभी सफ़र बहुत लम्बा है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी................................!!

चलो आज, एक वादा कर दूँ,
कि तुम्हे कभी रोने न देंगे...
माना कि है कठिन निभाना,
पर टूटे न ये दुआ करेंगे...
अब तो हंस दो मान भी जाओ,
पोंछ लो आँखें जो नमी है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी,
अभी सफ़र बहुत लम्बा है बाकि...
यूँ हमसे न रूठो ज़िन्दगी..................................!!
 
~~ अंकिता जैन ~~
___________________

Sarhad - Ankita Jain


सरहद 
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सरहद की हर हद पर तुम हो,
दुश्मन की हर जिद पर तुम हो !
लेते हैं जो स्वतंत्र सांस हम,
उस हर सांस के रक्षक तुम हो !

कभी कारगिल में रखवाली,
या हो बम्बई की गोली-बारी !
इनसे जो बेफिक्र बनाये,
उस हर सोच के रक्षक तुम हो !

धरती कांपे या आये सुनामी,
हो जीवन की आँखों में पानी !
हर मुश्किल से राहत देकर,
उस राहत के रक्षक तुम हो !

करते हैं झुककर सलाम हम,
तुम हो तो न कभी गुलाम हम !
कभी जो खाए डर हम सब को,
उस ज़ालिम डर के भक्षक तुम हो !

~~ अंकिता जैन ~~
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Saturday, June 16, 2012

suraj ne kaha - Ankita Jain "Bhandari"

सूरज ने कहा
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सूरज ने कहा उस बदरी से,
              ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !
सारी रात तेरे आघोष में सोया हूँ,
               अब तो मेरे रंगों को बिखराओ !
खिलने जाने दो मेरी ये धूप,
               तड़प रही है जिसे पाने को धरती !
पिघल जाने दो ये ओस की बूँदें ,
               जो सारी रात है तुमने बिखेरी  !
बाकि हैं खिलनी अभी,
                मेरे इंतज़ार में कलियाँ !
सुबह की राह तकती,
                सूनी पड़ी हैं गलियां !
ना फैलाओ ये अँधियारा,
               होकर यूँ उदास !
मैं फिर वापस आऊंगा,
               अब थोड़ा तो मुस्कुराओ !
सूरज ने कहा उस बदरी से,
              ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !!


~~ अंकिता जैन "भंडारी "~~
 

______________________

Wednesday, June 13, 2012

Yeh dil - Kusum


यह दिल
___________

बहुत सी बाते ऐसी है जो अनकही रह गई, सोचते ही रहे गए गर कह न सके

जो बात दिल की थी दिल में ही रह गई।

समय के चक्र से इस तरह बदली तस्वीर, कि न चाहते हुए भी वह बदल कर रह गई,

चाह जिसे अपने से भी ज्यादा, उसी ने दिल दुखाया बहुत ज्यादा

कह गए वह बात ऐसी, दिल में लगी आग जैसी, न चुभे सोचकर भी गर चुभ गई ।

आँखों में आये आंसू दिल में टीस उठी, आँखों कि नमी बस आँखों में रह गई ।

बहुत सी बाते ऐसी है जो अनकही रह गई।

अगर हम दूसरे थे तो दूसरे ही रह जाते, उस समय क्यों दिल लगाया था

क्यों उस में हमारे अरमानो का दिया जलाया था ।

क्या हम ही मिले तुम्हे दिल से खेलने के लिए जो तुम खेले और खेल कर चले गए ।

गर मालूम होता कि ऐसा होगा, न हम यह दिल लगाते न ही जख्म पाते

जिस तरह जी रहे थे उसी तरह जी जाते , अब तो यह आलम है न जीते है न मरते है ।

इस कदर हम अपनी खामोशियाँ हम से रूठ जाए,

खेले खूब हंसी के साथ, दिल में रहे न कोई आस ।


~~ कुसुम ~~
___________


 

Kuch Pal Ki Khusiya - Kuldeep Sahoo


Kuch Pal Ki Khusiya - Kuldeep Sahoo

Poet : Kuldeep Sahoo

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kuch pal ki khushiya thi wo jo unki ankho se jhalaki thi

kuch pal ki jhushiya thi eo jinse hui unki ankhe halki thi

kuch pal ki khushiya thi wo jin ke sahare hum ji rhe the

kuch pal ki khushiya thi wo jinke liye ham har gam pi rhe the

agle kuch pal me lag gayi un khushiyo ko kisi ki najar

agle kuch pal me hone lga un khushiyo pr asr

jo the dil k kareeb wo jane lage dur

jinke the dil majboot wo bhi padne lage kamjor

ankhe kar rhi thi baya jo unke dil ka haal tha

ladte jhagadte unse beet gya 1 sal tha

har ek anshu kar rha tha hale dil baya

har ek ulfat ko akele le kar use mila kya???


kuch pal ki khushiya thi wo jinka mujhe intjar tha

kuch pal ki khushiya thi wo jinse mjhe pyar tha

kuch pal ki khusiya thi wo jinhone cheena mera karar tha

kuch pal ki khushiya thi wo jinke liye mai bekrar tha

kuch pal beete akhiri din aya

kuch pal beete uski yado ne mjhe sataya

kuch pal beete to thi wo bhi presan

kuch pal beete use rota dekh tha mai bhi hairan

pahli bar the uski ankho me anshu mere liye...

judayi k dard se the uske chehre k rng ude hue

dil me tha drd pr dil me tha karar

wo ankho k samne thi par bhi thi takrar

kuch pal ki khushi thi wo jiske liye thi wo milne ko taiyar

kuch pal ki khushi thi wo jisse mjhe ho gya tha pyar

kuch pal ki khushi thi wo jisne mjhe moda har bar

kuch pal ki khushi thi wo jiske liye bhul gaye the ham apni takrar

Poet : Kuldeep Sahoo

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Woh Khwab meri - Avaneesh Gahoi


वो ख्वाब मेरी 
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कभी परी तो कभी अप्सरा है,

कभी दुआ तो कभी दवा है

कभी तपिश तो कभी सर्द हवा है.
कभी दिल में होती है तो कभी नजर में,
कभी यादों में तो कभी ख्वाबो मैं.
कभी जानी-पहचानी है तो कभी अनजानी सी
थोड़ी पगली सी है, थोड़ी दीवानी सी.
कभी पल्लवी सी है तो कभी पंखुड़ी सी,
थोड़ी नाजुक सी है बहुत प्यारी सी.
न जाने वो ऐसी है या सिर्फ मुझे लगती है,
मगर जो भी है बहुत अपनी सी लगती है.
न जाने ये सच है या सिर्फ एक ख्वाब है
वो दूर होकर भी मेरे बहुत पास है |
~~ अवनीश गहोई ~~
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Fasale - Avaneesh Gahoi

 
फासले 
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कल फिर आई थी तुम ख्वाब में,
 
कोहरे से ढकी किसी सुबह में,
 
ओस की बूंदों सी थी तुम या सूर्य की किरण सी,
 
पल्लवी सी थी तुम या किसी परी सी,
 
वही मुस्कान थी चेहरे पर आँखों में फिर चमक थी,
 
खामोश मैं था और तुम भी चुप थी,
 
बातें तो बहुत थी पर शब्द कम थे,
 
दूर हम नहीं थे पर फासले बहुत थे.
 
देख कर तुम्हे, मैं खुश भी बहुत था,
 
दिल में उमंग थी आँखों में फिर नशा था,
 
कुछ दूर मैं चला था पर साथ तुम नहीं थे,
 
दूर हम नहीं थे पर फासले बहुत थे.....
 
 
~~ अवनीश गहोई ~~
________________

Jab Talak - Avaneesh Gahoi


जब तलक
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जब तलक है धड़कन दिल में,

जब तलक है रूह जिस्म में,
 
जब तलक मुखातिब है मेरी नजर नजारों से,
 
जब तलक है सूरज की रौशनी चाँद की चांदनी,
 
जब तलक है जहाँ में हवा और पानी,
 
जब तलक तेरी सीरत है पाक और तुझे है मेरी याद,
 
तब तलक मेरी मुहब्बत,
 
मेरे सीने में है तेरे लिए
 
चाहत इज्ज़त और मुहब्बत बस तब तलक.
 
अवनीश गहोई
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Meri Maa - Avaneesh Gahoi


मेरी माँ
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मेरे जन्म के साथ ही वो औरत से बनी थी माँ ,
और अपनी आँखों से देखा था मैंने उन्हें पहली बार.
जिनकी कोख मैं बिताए थे मैंने नौ महीने,
उनसे था ये मेरा पहला साक्षात्कार .

उन्होंने ही दिया था मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान,
और कराई प्रकृति से मेरी पहचान
कभी गुस्से में जो मारा था मुझे थप्पड़,
 तो गीला हो गया था तकिया उनका |
और थप्पड़ मारने का दर्द,बह रहा था आंसुओं में ,
मैंने सीखा था उस रोज एक नया सबक,
और जाना माँ के गुस्से में भी है ममता,बीमारी मैं दवा है माँ का स्पर्श,
मुश्किल मैं उनका साथ है मेरी सबसे बड़ी ताकत |

माँ की खूबियों को मैं शब्दों में पिरो नहीं सकता,
माँ के ऋण से मैं कभी मुक्त हो नहीं सकता |
वो धरती पर भगवन हैं मेरे लिये,
बिन मांगे जो देती हैं वरदान सदा |

उनके होंठों पर दुआ है मेरे लिये और आँखों में कामयाबी के सपने,
ईश्वर ने दी है उन्हें सृजन करने की अद्भुत क्षमता,और असीमित धैर्य भी
मैंने उने बहुत है जगाया और सताया,अब चाहता हूँ मैं बस इतना विधाता,
न बनूँ कारण कभी उनके कष्ट का, न हों आंसूं उन आँखों में मेरी वजह से.
कायम रहे उनके चेहरे की मुस्कान सदा,और न ही कभी कम हो उनके प्रति श्रद्धा.

अवनीश गहोई

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