Wednesday, June 11, 2014

Jise tum samajhte ho abhishaap - Mamta Sharma

जिसे तुम समझे हो अभिशाप 
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जिसे तुम समझे हो अभिशाप 
मृत्यु ही जीवन का संदेस। 
अगर दुःख न होगा तो सुनो !
सुखों कि आग जलेगा गेह। 

 जहाँ पर भरी निराशा सुनो !
चलेगी आशा की गाड़ी ,
अगर है सुख ही सुख गर जो ,
बिछड़ जाएँगी वे सारी।

बनाया सुख -दुःख का संसार 
बड़ा ही उच्च खिलाडी  है ,
सुबह को  धूप खिलाई जो,
रात्रि में चन्द्र की  बारी है .

 रचाया पूरा हमने स्वांग ,
पता न कब जाना हो दूर ,
कहीं जो रहें तकें हर पल, 
सांसों की अर्जी  ना मंज़ूर।

मृत्यु जीवन के बीच फंसे।,
लगे जादू - टोना सी सांस,
लगे सब कुछ अपना सा आज ,
बनेगा वह जीवन की  फांस। 

बने हम फूल पंछी पत्थर ,
बने हम ही हैं जीव हज़ार     
चली चाकी  पृथ्वी की  है ,
पिसे हैं अन्न बने कई बार। 

धरे नव रूप ,पात नव गात ,
नये  से लिए वर्ण कई बार 
चलाया उस ने यह व्यापार,
इसे न समझो तुम अभिशाप ,
यही तो जीवन है अभिराम 
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ममता  शर्मा 

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