जिसे तुम समझे हो अभिशाप
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जिसे तुम समझे हो अभिशाप
मृत्यु ही जीवन का संदेस।
अगर दुःख न होगा तो सुनो !
सुखों कि आग जलेगा गेह।
जहाँ पर भरी निराशा सुनो !
चलेगी आशा की गाड़ी ,
अगर है सुख ही सुख गर जो ,
बिछड़ जाएँगी वे सारी।
बनाया सुख -दुःख का संसार
बड़ा ही उच्च खिलाडी है ,
सुबह को धूप खिलाई जो,
रात्रि में चन्द्र की बारी है .
रचाया पूरा हमने स्वांग ,
पता न कब जाना हो दूर ,
कहीं जो रहें तकें हर पल,
सांसों की अर्जी ना मंज़ूर।
मृत्यु जीवन के बीच फंसे।,
लगे जादू - टोना सी सांस,
लगे सब कुछ अपना सा आज ,
बनेगा वह जीवन की फांस।
बने हम फूल पंछी पत्थर ,
बने हम ही हैं जीव हज़ार
चली चाकी पृथ्वी की है ,
पिसे हैं अन्न बने कई बार।
धरे नव रूप ,पात नव गात ,
नये से लिए वर्ण कई बार
चलाया उस ने यह व्यापार,
इसे न समझो तुम अभिशाप ,
यही तो जीवन है अभिराम
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ममता शर्मा
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