Wednesday, June 11, 2014
Mahfuz - Pallav
महफूज
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माँ !
मैं बहुत खुश हूँ
यहाँ तुम्हारे अंदर...
सुखी,सुरक्षित,निर्भीक
और स्वतन्त्र भी.
ले सकती हूँ
अपनी मर्जी की साँसें
यहाँ मेरे लिए
कोई बंदिश भी नहीं है
फैला सकती हूँ पंखें
उड़ सकती हूँ निर्बाध.
दूर-दूर तक नहीं है यहाँ
घृणित मानसिकता की
घूरती आँखें
आदमजात की खालों में
पशुओं की घातें.
महफूज हूँ उन खतरों से भी
जिससे तुम्हें हर रोज वाकिफ
होना पड़ता है
मेरी दुनियाँ छोटी ही सही पर
तुम्हारी दुनिया जितनी
स्याह और विषैली नहीं है...
मैं बहुत खुश हूँ
यहाँ तुम्हारे अंदर...
सुखी,सुरक्षित,निर्भीक
और स्वतन्त्र भी.
ले सकती हूँ
अपनी मर्जी की साँसें
यहाँ मेरे लिए
कोई बंदिश भी नहीं है
फैला सकती हूँ पंखें
उड़ सकती हूँ निर्बाध.
दूर-दूर तक नहीं है यहाँ
घृणित मानसिकता की
घूरती आँखें
आदमजात की खालों में
पशुओं की घातें.
महफूज हूँ उन खतरों से भी
जिससे तुम्हें हर रोज वाकिफ
होना पड़ता है
मेरी दुनियाँ छोटी ही सही पर
तुम्हारी दुनिया जितनी
स्याह और विषैली नहीं है...
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पल्लव
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Matdan - Mamta Sharma
"मतदान "
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अपनी ढपली , अपना राग ,
बेसुरी धुन व बेसुरी तान,
फिर से वही गवैये आये,
फिर मतदान के दिन हैं आये।
जगह -जगह बरसाती मेंढक ,
निकल आये मेढ़ों पर चढ़ कर ,
जाने कैसे गीत ये गायें ,
फिर मतदान के दिन हैं आये।
वही पुरानी चित - परिचित धुन,
अपनी मैं -मैं ,दूजों की चुप,
लीपा -पोती सीख के आयें ,
फिर मतदान। ……।
लिए आये फिर धूर्त चरित्र ,
माला फूलों के वही चित्र ,
हार में खुद को हार ना जाएँ ,
फिर मतदान के। ……।
जगह जगह फिर उत्स खड़ा है ,
मतदाता वीभत्स खड़ा है ,
अक्ल पे धुंध व् बादल छाये ,
फिर मतदान। …
कुत्ते -बिल्ली , शेर -बिलाव ,
लड़ें ज्जोर व् फेंकें दाव ,
शर्म को ताक पे ही धर आये ,
फिर मतदान। …
रंक महीपति सभी खड़े हैं ,
क्षेत्र छोड़ कहीं दूर लड़े है ,
सामने से वो भिड़ने जाएँ।,
फिर मतदान ..........
कोई लल्ला , कोई अल्ला वाले ,
बड़े ठगों के हैं कोई साले ,
सबका माल पेट में जाए ,
फिर मतदान। ....
हरदम हल्ले , हरदम रैली ,
दुनिया भीतर -बाहर मैली ,
आम - ख़ास कुछ समझ ना पाये ,
फिर मतदान के दिन हैं आये।
जरा अगर देश कि होती ,
फिर यूं त्राहि -त्राहि न होती ,
बच्चे भूखे ही सो जाएँ ,
फिर मतदान। ....
जन -जन पे रोटी जो होती ,
शिक्षा की सोटी जो होती ,
ओ प्रभु दिन ये क्यूँ दिखलाये ,
फिर मतदान के दिन हैं आये।
देश की बेटी लाज जो होती ,
युवकों में कुछ लाज जो होतीं ,
देश को दिन फिर ही लग जाएँ,
फिर मतदान
चुनो जरूर सब देख - परख के ,
मत देना सब आँख में रख के ,
फिर से देश शिखर पे जाए
फिर मतदान। ....
लाईन लगेगी , छुट्टी होगी ,
घर में खीर , बाहर भी होगी,
सभी चलो मिल बाँट के खाएं ,
फॉर मतदान। …
आह !ये कैसा शुभ दिन आया ,
सारी खुशियां संग ही लाया,
वोटर जब से हैं बन पाये ,
फिर मतदान। …
पंडित ,मोची ,धोबी , नाई ,
मास्टर , क्लर्क ,बढ़ई , हलवाई ,
सभी एक संग हैं लो आये ,
फिर मतदान। .......
नंदी -भाभी ,सास बिदक गईं ,
मित्र -पड़ोसन भी लो भिड़ गईं ,
काहे को जी राड़ बढ़ाएं ,
फिर मतदान के। …
मन्नत तीरथ व्रत हैं बोले ,
बाला जी, पुष्कर ,या भोले ,
तीरथ भजन कुछ काम न आये ,
फिर मतदान। ………
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ममता शर्मा
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Jise tum samajhte ho abhishaap - Mamta Sharma
जिसे तुम समझे हो अभिशाप
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जिसे तुम समझे हो अभिशाप
मृत्यु ही जीवन का संदेस।
अगर दुःख न होगा तो सुनो !
सुखों कि आग जलेगा गेह।
जहाँ पर भरी निराशा सुनो !
चलेगी आशा की गाड़ी ,
अगर है सुख ही सुख गर जो ,
बिछड़ जाएँगी वे सारी।
बनाया सुख -दुःख का संसार
बड़ा ही उच्च खिलाडी है ,
सुबह को धूप खिलाई जो,
रात्रि में चन्द्र की बारी है .
रचाया पूरा हमने स्वांग ,
पता न कब जाना हो दूर ,
कहीं जो रहें तकें हर पल,
सांसों की अर्जी ना मंज़ूर।
मृत्यु जीवन के बीच फंसे।,
लगे जादू - टोना सी सांस,
लगे सब कुछ अपना सा आज ,
बनेगा वह जीवन की फांस।
बने हम फूल पंछी पत्थर ,
बने हम ही हैं जीव हज़ार
चली चाकी पृथ्वी की है ,
पिसे हैं अन्न बने कई बार।
धरे नव रूप ,पात नव गात ,
नये से लिए वर्ण कई बार
चलाया उस ने यह व्यापार,
इसे न समझो तुम अभिशाप ,
यही तो जीवन है अभिराम
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ममता शर्मा
Prayatn - Sumit Jain
प्रयत्न
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मनुष्य का जीवन सफलता
और असफलता के बिच घिरा हुआ है
मानो इस का कारण प्रयत्न ही तो है
किसी को थोडा तो किसी को ज्यादा
और किसी को कुछ भी नहीं
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
व्यक्ति हर पल प्रयत्न करता है
कभी वह अपने आप से
कभी नींद से जाग ने के लिए
कभी तो जाग कर सोने के लिए
कभी वह जित ने के लिए
कभी वह हार ने के लिए
कभी दुनिया से लढने के लिए
फिरभी वह प्रयत्न करता ही जाता
क्यों मनुष्य जल्दी से विचलित हो जाता है
और अपने को गम के आसु से भिगो देता है
क्यों बर्दाश्त नहीं कर सकता असफलता को
या क्यों खुश हो जाता है सफलता से
और क्यों भाग खड़ा होता है प्रयत्न करने से
पानी की बूंद- बूंद से घड़ा भरता है
वैसे ही थोड़ा थोड़ा प्रयत्न करने से
एक दिन सफलता मिल ही जाती है
प्रयत्न का मतलब ही तो स्वयं को खोजना
और जीवन को सही राह बताना है
सफलता की कुंजी ही है एक मात्र प्रयत्न
हमें जोड़ना होगा स्वयं को व्यक्ति से,
और व्यक्ति को धर्म से
मुक्ति के मार्ग पर चल ने के लिए
हमें प्रयत्न करना है - और करते रहना है!!
और असफलता के बिच घिरा हुआ है
मानो इस का कारण प्रयत्न ही तो है
किसी को थोडा तो किसी को ज्यादा
और किसी को कुछ भी नहीं
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
व्यक्ति हर पल प्रयत्न करता है
कभी वह अपने आप से
कभी नींद से जाग ने के लिए
कभी तो जाग कर सोने के लिए
कभी वह जित ने के लिए
कभी वह हार ने के लिए
कभी दुनिया से लढने के लिए
फिरभी वह प्रयत्न करता ही जाता
क्यों मनुष्य जल्दी से विचलित हो जाता है
और अपने को गम के आसु से भिगो देता है
क्यों बर्दाश्त नहीं कर सकता असफलता को
या क्यों खुश हो जाता है सफलता से
और क्यों भाग खड़ा होता है प्रयत्न करने से
पानी की बूंद- बूंद से घड़ा भरता है
वैसे ही थोड़ा थोड़ा प्रयत्न करने से
एक दिन सफलता मिल ही जाती है
प्रयत्न का मतलब ही तो स्वयं को खोजना
और जीवन को सही राह बताना है
सफलता की कुंजी ही है एक मात्र प्रयत्न
हमें जोड़ना होगा स्वयं को व्यक्ति से,
और व्यक्ति को धर्म से
मुक्ति के मार्ग पर चल ने के लिए
हमें प्रयत्न करना है - और करते रहना है!!
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सुमित जैन
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Mujhe Sangharshrat rehne do - Sanjay Kirar
मुझे संघर्षरत रहने दो
_________________________
मुझे संघर्षरत रहने दो
अभी हवाओ की डोर थामी है
मौसमों से कहने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
तलवों ने अभी रेत चूमी
जिज्ञासा अभी इर्द हिर्द घूमी है
अंगड़ाई लेकर रूह जागी अभी
इसे प्रातः की पहली किरण छूने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
इतनी प्यास की समुन्दर सूख जाए
इतिहास आज खुद से ऊब जाए
जीवन मरण की सेज बिछाकर
कुछ कर्त्तव्य अर्पित करने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
माना घनी रात है उजाला नहीं
प्रेरणा दीप से कब डरा धुधलका नहीं
एक दीप ही सही आंधियो में
प्रेरणा के नाम प्रज्वलित रहने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
अभी हवाओ की डोर थामी है
मौसमों से कहने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
तलवों ने अभी रेत चूमी
जिज्ञासा अभी इर्द हिर्द घूमी है
अंगड़ाई लेकर रूह जागी अभी
इसे प्रातः की पहली किरण छूने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
इतनी प्यास की समुन्दर सूख जाए
इतिहास आज खुद से ऊब जाए
जीवन मरण की सेज बिछाकर
कुछ कर्त्तव्य अर्पित करने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
माना घनी रात है उजाला नहीं
प्रेरणा दीप से कब डरा धुधलका नहीं
एक दीप ही सही आंधियो में
प्रेरणा के नाम प्रज्वलित रहने दो
मुझे संघर्षरत रहने दो ...
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संजय किरार
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Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko; by :- Maithli Sharan Gupt . A very inspirational poem by a lovable poet...
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कवियित्री :- सुभद्रा कुमारी चौहान यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे , मैं भी उस पर बैठ कन्हिया बनता धीरे,धीरे... ले देती यदि बांसुरी...