Saturday, December 24, 2011

Judai - Altaf Raja

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जुदाई
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गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा

गम जुदाई का यूं...


वो तो चल भी दिया, दिल मेरा तोड़ कर
मुझ पे बीती है क्या, काश लेता खबर
ये वो गम है जो होगा न कम उम्र भर
होगा पानी का क्या पत्थरों पे असर
इतना रोया हूँ मैं, याद कर के उसे
आसुओं में मुझे डूब जाना पड़ा

गम जुदाई का यूं...


जिसकी खातिर ज़माने को ठुकरा दिया
उसकी चाहत में मुझको मिला ये सिला
गैर के साथ उसका मिलन हो गया
मेरी मजबूरियों की नहीं इंतेहा
उसकी शादी में उसकी खुशी के लिए
प्यार के गीत मुझको भी गाना पड़ा

गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा

~~ अल्ताफ राजा ~~

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Shiv Ka Dhanush - Kaka Hathrasi


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शिव का धनुष
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विद्यालय में आ गए इंस्पेक्टर इस्कूल
छठी क्लास में पढ़ रहा विद्यार्थी हरफूल
विद्यार्थी हरफूल, प्रश्न उससे कर बैठे
किसने तोड़ा शिव का धनुष बताओ बेटे
छात्र सिटपिटा गया बेचारा, धीरज छोड़ा
हाथ जोड़कर बोला, सर, मैंने न तोड़ा

उत्तर सुनकर आ गया, सर के सर को ताव
फौरन बुलवाए गए हेड्डमास्टर सा'ब
हेड्डमास्टर सा'ब, पढ़ाते हो क्या इनको
किसने तोड़ा धनुष नहीं मालूम है जिनको
हेडमास्टर भन्नाया, फिर तोड़ा किसने
झूठ बोलता है, ज़रूर तोड़ा है इसने

इंस्पेक्टर अब क्या कहे, मन ही मन मुस्कात
ऑफिस में आकर हुई, मैनेजर से बात
मैनेजर से बात, छात्र में जितनी भी है
उससे दुगुनी बुद्धि हेडमास्टर जी की है
मैनेजर बोला, जी हम चन्दा कर लेंगे
नया धनुष उससे भी अच्छा बनवा देंगे


शिक्षा-मंत्री तक गए जब उनके जज़्बात
माननीय गदगद हुए, बहुत खुशी की बात
बहुत खुशी की बात, धन्य हैं ऐसे बच्चे
अध्यापक, मैनेजर भी हैं कितने सच्चे
कह दो उनसे, चन्दा कुछ ज़्यादा कर लेना
जो बैलेन्स बचे वह हमको भिजवा देना


~~ काका हथरसी ~~
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Nigah dhundata hoon - Ankita Jain

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निगाह ढूँढता हूँ 
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अब भी तेरी नज़र में मेरा गुनाह ढूँढता हूँ,
बेदर्द हर पहर में, मौत की पनाह ढूँढता हूँ !
तूने तो सरे आम मुझे गुनेहगार करार दिया,
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!

बंजर हुई ये आँखे मेरी, छू सके वो गागर अश्क भरा,
थाम सके जो सांसे मेरी, मिल जाये मुझे वो शख्स मेरा !
कर सके मेरी ये फरियाद पूरी वो अल्लाह ढूँढता हूँ
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!

बीच समंदर मुझे बुलाकर, जब छोड़ा था तूने साथ मेरा,
आया भी वापस कुछ पल को, तो थामा न तूने हाथ मेरा !
क्यूँ गैरत बनी फिर चाहत तेरी, खुद में वो गुनाह ढूँढता हूँ
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!

~~ अंकिता जैन " भण्डारी " ~~

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Mere desh ki maati sona - Anand Vishwas

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मेरे देश की माटी सोना
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मेरे देश की माटी, सोना, सोने  का  कोई  काम  ना.
जागो  भैया   भारतवासी, मेरी  है   ये    कामना.
दिन तो दिन है, रातों  को  भी, थोडा-थोडा  जागना,
माता  के आँचल पर  भैय्या ,आने  पावे  आँच  ना.

अमर  धरा  के वीर सपूतो, भारत  माँ की शान  तुम,
माता के  नयनों  के तारे. सपनों  के   अरमान  तुम.
तुम  हो वीर शिवा के वंशज, आजादी  के  गान   हो,
पौरुष  की  हो खान, अरे तुम, हनुमत से अनजान हो.

तुमको  है आशीष   राम  का, रावण पास   ना आये,
अमर  प्रेम हो  उर में इतना, भागे  भय से  वासना.

आज  देश का वैभव रोता, मरु  के नयनों मे पानी  है,
मानवता रोती है  दर - दर,उसकी  भी  यही कहानी है.
उठ कर गले लगा लो तुम, विश्वास  स्वयं ही सम्हलेगा,
तुम  बदलो  भूगोल जरा,  इतिहास स्वयं ही  बदलेगा.

आड़ी - तिरछी   मेंट लकीरें , नक्शा   साफ  बनाओ,
एक  देश  हो, एक  वेश हो, धरती  कभी न  बाँटना.

गैरों   का  कंचन  माटी है, देश  की  माटी   सोना.
माटी  मिल  जाती   माटी  में, रह  जाता  है  रोना.
माटी की खातिर  मर मिटना, माँगों  को सूनी कर देना,
आँसू  पी - पी सीखा  हमने,  बीज शान्ति के  बोना.

कौन  रहा  धरती  पर भैय्या, किस  के साथ गई  है,
दो पल  का है  रेंन  बसेरा, फिर  हम सबको  भागना.

हम  धरती के लाल, और  यह हम सबका आवास  है.
हम  सबकी हरियाली   धरती, हम  सबका  आकाश है.
क्या हिन्दू,  क्या  रूसी चीनी, क्या इंग्लिश   अफगान,
एक  खून है सबका भैय्या , एक सभी की   साँस  है.

उर  को  बना  विशाल ,प्रेम का  पावन  दीप जलाओ,
सीमाओं  को  बना  असीमित,  अन्तःकरण   सँवारना.
मेरे  देश  की  माटी,  सोना ...........


 
~~ आनंद विश्वास ~~
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Meri Zindagani - Gaurav Mani Khanal

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मेरी ज़िंदगानी
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मेरी जिंदगानी....

कुछ नगमे अधूरे से,

कुछ ख्वाब सुनहरे से,

कभी हकीक़त तो कभी सपनो की कहानी,

यही है मेरी जिंदगानी,

कुछ पल का साथ आपनो का,

लम्बी रातो मे साथ सूनेपन का ,

कभी महफ़िल तो कभी तन्हाई की कहानी,

यही है मेरी  जिंदगानी,

बहुत नाजुक धागा प्यार का,

पल भर मे बिखर जाता है महल कॉच का,

कभी प्यार तो कभी दर्द की कहानी,

यही है मेरी जिंदगानी,

एक भरा टोकरा यादो का,

खट्टी मीठी बातो का,

कभी खुशी कभी गम की कहानी,

यही है मेरी जिंदगानी,

ये पल है संसार का,

एक पल आएगा श्मशान का,

मेरे अच्छे बुरे कर्मो की निशानी,

यही है मेरी जिंदगानी...


 ~~  गौरव  मणि  खनाल  ~~
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Ek Ajnabi Raat - Sushil Kumar Singh

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 एक अजनबी रात
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तकियों से लिपटी हुयी एक अजनबी रात,
कुछ ऐसे बीती, उनकी ठंढी सी मुलाकात,


जाने कहा से वो, सूरज ढलते ही आये थे,

तलासु मै चैन, वो बेचैनी का सेज लाये थे,


पलकों से उठ कर जब नज़ारे देखती,

वही कोने में मिटी-2 सी नीद रह जाती,


आँखों के किनारों पे सपने हजार थे,

पर उनकी एक झलक ही बाकि थी,


कहे "अकेला" इस रात अकेला नहीं था,

कुछ चटपटे लम्हों से घिर सा गया था,


फिर हांथो पे अपने सर को ठहराए,

दिल के पीछे धड़कन को छिपाए,


एक टक-टकी सी लगी थी दरवाजो पे,

उनकी हल्की-2 छनकती पाजो पे,


तभी झरोखों से कट के आती ठंढी हवा,

 जैसे उनका ही अहशास हो रहा हो,


यारो सरे बाज़ार उनका नाम न पूछना,

मेरी मोहब्बत का कभी एहशान न पूछना,


कहू कहानी क्या उस अजनबी रात की,

सुनो मेरी जबानी उस मुलाकात की,


तकियों से लिपटी हुयी एक अजनबी रात,

कुछ ऐसे बीती, उनकी ठंढी सी मुलाकात

~~ सुशील कुमार सिंह ~~ 

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Friday, December 23, 2011

Tere nishan - Abhishek kumar Gupta

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तेरे निशाँ

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फिर से जिंदगी के उस मुकाम पर खड़ा हूँ |
सवाल तो कई है लेकिन जवाबो का पता नहीं |
वफ़ा तो याद, पर ना मालूम, कि क्या खता रही |
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही तेरा पता नहीं ||

इतनी दूर यूँ चला आया मैं, तेरे इश्क में थी ऐसी इबादत,

आँखों में  बेताबी थी और दिल में सिर्फ मोहब्बत |
तू ना थी साथ और पथ पर आई बहुत सी रुकावट ,
गम ना था उस दर्द का, केवल एक है अब शिकायत,
मजिल पर तो मैं पहुँच गया लेकिन तेरा कोई निशाँ नहीं ,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

नभ पर सप्तऋषि सा, तुम्हारे जीवन का संकेत तो दिखता है,

उस दिशा में देखू तो ना ध्रुव, ना  कोई अवशेष झलकता है  |
तुम आये थे तो  इस ओर, तेरे पैरो के निशान मैं जानता हूँ |
तुम रोये थे, मिटटी के मिली तेरे आंसूओ  की खुशबू मैं पहचानता हूँ  |
तेरी हर एक बात मुझे याद, तड़पा सता रही ,
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

सफ़र तो था साथ किया शुरू, प्यार ही था केवल एक कायदा |

ना जाने कब बिछड़े  तुम, पर फिल मिलने का था एक वायदा |
मेरे आने में थोड़ी देर हुई, क्या उसकी ऐसी सजा मिली |
इंतजार  तो अभी भी करेंगे, हार मानने की अभी रजा नहीं |
अनजान पंक्षियों को सुनने की कोशिश करता, शायद ये कुछ बता रही,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

~~ अभिषेक कुमार गुप्ता ~~
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Sunday, August 14, 2011

Samay Dhara – Gaurav Mani Khanal

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Sun       समय धारा       Clock

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समय की धारा मे बहता जा रहा हु,
कोई डर नहीं मन मे है,
निर्भीक हो के चला जा रहा हु,
किनारों की कोई खबर नहीं,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
मंजिल कहा मेरी किसको पता,
कल कहा लेजायेगी धारा किसको पता,
मुझे तो आज ही मौज मानना है,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
कभी छल छल करती बहती धारा,
कभी शांत स्थिर रहती है,
मै भी धारा के संग बदलता हु,
कभी मुस्कुराता तो कभी रोता हु,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
आज देश कल परदेश लेजाती है,
कभी सुख कभी दुःख दिखाती है,
सुख दुःख देश परदेश घुमते हुए,
मुझे आपनी अनदेखी मजिल पानी है,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
आपनी मजिल को पाना है
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है...


In love  गौरव मणि खनाल  Hot smile ~

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Friday, July 22, 2011

Ab akele chalna hoga – Gaurav mani khanal

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Rainbow  अब अकेले चलना होगा Coffee cup

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अब अकेले चलना होगा
चला हु अब तक ऐ  दोस्त तेरे साहरे,
पर चलना होगा अब मुझे अकेले,
अपने कर्मो के फलो को भोगना होगा,
बन्धु मेरे अब अकेले चलना होगा,
तेरी कमी हर पल सताएगी,
हँसी पुरानी फिर चेहरे पर नही आएगी,
पर यादो को संजोना होगा,
यार मेरे अब अकेले चलना होगा,
कभी शाम तनहा रुलाएगी,
सच कहता हु तेरी याद बहुत आएगी,
पर बनाकर दोस्त आपने अकेलेपन को,
सखा मेरे अब अकेले चलना होगा,
जीवन का पथ ही ऐसा है,
हर मोड़ पर कुछ मिलता कुछ खोता है,
मिलने छुटने के फेरो से अब निकलना  होगा,
साथी मेरे अब अकेले चलना होगा,
अब आपनी पहचान बनानी होगी,
जीवन संघर्ष की लड़ाई अकेले लड़नी होगी,
जीत कर इस लड़ाई को तेरा मान रखना होगा,
दोस्त मेरे अब अकेले चलना होगा,
दुनिया की चालो को पढना होगा,
धर्मं आर्थ काम मोक्ष को साधना होगा,
मानुष जन्म को सफल बनाना होगा,
मित्र मेरे अब अकेले चलना होगा,


             गौरव मणि खनाल.

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Adhunik Sanskar - Kusum

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Sun आधुनिक संस्कार Fingers crossed

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न जाने क्यों मेरी आखें नम थी ।
न जाने किस दर्द में गुम थी ।
किसी भ्रम में या किसी स्वपन में गुम थी।
देख रही थी शायद आधुनिकता को ,
या फिर ढूढ़ रही थी पुराने संस्कारो को
न जाने किस चीज़ की उसको तलाश थी ।
आज अचानक देखे गए दृश्यों से दंग
थी ।
या हो रहे अत्याचार से तंग थी ।
कल तक जिसने हाथ पकड़ कर चलना सिखाया था
अपने मुह का निवाला भी तुमको खिलाया था
आज उसी के लिए अपने घर पर जगह नहीं ,
आज उसकी कोई कीमत या कदर नहीं,

क्यों छोड़ देते है अकेला उनको ,
जिन्होंने स्वपन देखने सिखाये हो तुमको ।

राहो मे चलना सिखाया हो तुमको ।।

Red rose कुसुम  

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Friday, July 1, 2011

Sapna sa lage - Ankita Jain "Bhandari"

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सपना सा लगे
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गरजते बदरा की धुन सा लगे,
तो कभी बारिश की फुहार की छुवन सा लगे !
क्यूँ वो अनजान चेहरा मुझे अपना सा लगे,
पर जब पाने को हाथ बढाऊं तो सपना सा लगे !!
 
कभी सितार की मधुर सरगम सा लगे,
तो कभी तेज़ बारिश की छनछन सा लगे !
क्यूँ उसके अहसास से तनहा राहों पर दिया सा जले,
पर जब पाने को हाथ बढाऊं तो सपना सा लगे !!

जाने कबसे वो संगसंग मेरी धड़कन के चले,
जाने कबसे वो आकर इन ख्यालों में बसे !
है इंतज़ार उस लम्हे का जब वो इन ख्वाबों से निकले,
और जब पाने को हाथ बढाऊं तो इक सच सा लगे !!

~~ अंकिता जैन "भंडारी" ~~
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Mitne wali raat nahi - Anand Vishwas

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                मिटने वाली रात नहीं ........
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दीपक की है क्या बिसात , सूरज के वश की बात नहीं,
चलते - चलते थके सूर्य , पर मिटने वाली रात नहीं.

चारों ओर निशा का शाशन,
सूरज भी निश्तेज हो गया.
कल तक जो पहरा देता था,
आज वही चुपचाप सो गया.

सूरज भी दे दे उजियारा , ऐसे अब हालत नहीं,
चलते-चलते ..............................

इन कजरारी काली रातों में,
चन्द्र-किरण भी लोप हो गई.
भोली - भाली गौर वर्ण थी,
वह रजनी भी ब्लैक हो गई.

सब सुनते हैं, सब सहते, करता कोई आघात नहीं,

चलते-चलते.............................

सूरज तो बस एक चना है,
तम का शासन बहुत घना है.
किरण - पुंज भी नजर बंद है,
आँख खोलना सख्त मना है.

किरण पुंज को मुक्त करा दे, है कोई नभ जात नहीं,
चलते-चलते ..........................

हर दिन सूरज आये जाये,
पहरा चंदा हर रात लगाये.
तम का मुंह काला करने को,
हर शाम दिवाली दिया जलाये.

तम भी नहीं किसी से कम है, खायेगा वह मात नही,

चलते-चलते .............................

ढह सकता है कहर तिमिर का,
नर तन यदि मानव बन जाये.
हो सकता है भोर सुनहरा,
मन का दीपक यदि जल जाये.

तम के मन में दिया जले, तब होने वाली रात नहीं,

चलते-चलते ............................

~~आनन्द विश्वास~~
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Pita - Gaurav Mani Khanal

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पिता
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जिनकी उंगली पकड़ सिखा चलना,

जिनके सहारे से सिखा मुसीबतों से लड़ना,

जिन्होंने कर दिया त्याग आपने अरमानो का मेरे लिए,

दिन रात बिना आराम किया काम मेरी इच्छा पूर्ति लिए,



बनकर सच्चा दोस्त सदा मेरा साथ निभाया,

बनकर गुरु दुराहे पर सही मार्ग दिखाया,

बनकर भाई दुःख सुख मे गले लगाया,

बनकर योध्या जीवन संघर्ष का पाठ पढाया,



भूल गए आपने दर्द मेरी हँसी के लिए,

रोये अकेले मे मेरी उदासी के लिए,

थके नहीं कभी मेरे संग संग चले,

कैसे हो हालात हाथ कभी नही छोड़े,



माँगा नही रब से कभी कुछ आपने लिए,

मेरी ही ख़ुशी बस एक चाहत उनकी,

त्याग समर्पण नि:स्वार्थ प्रेम,

पिता और ईश्वर मे नही कोई भेद,



नहीं हो सकता है वर्णन पिता के उपकारो का,

नहीं हो सकता है वर्णन पिता के बलिदानों का,

करू जितनी भी वंदना पिता के पावन चरणों की,

नहीं गा सकता हु महिमा भगवान स्वरूप पिता की,



बस इतनी विनती करता हु परम दयालु भगवान से,

दुःख ना आये कभी मेरे पिता के भाग्य मे,

बना देना लायक इतना है परमेश्वर,

की दे सकु सारी खुशिया और सुख आपने पिता भगवान को..



~~ गौरव मणि खनाल ~~
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Sunday, June 26, 2011

Adhoori chahat - Ankita Jain

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अधूरी चाहत
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आज फिर वो मेरे ख्वाबों में आया,
आज फिर उसने मुझे नींद से जगाया !
जाने कब होंगे ख़तम ये सिलसिले उसकी आहट के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!

कायल था जो कभी मेरी मगरूम मोहब्बत का,
लफ्ज़-ए-बयां कराती थी उसे अहसास ज़न्नत का !
पर जाने कब बदले ये सिलसिले उस सुकून और राहत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!

नहीं है नाता अब कोई, मेरा और उस परछाईं का,
फिर अब भी क्यूँ हैं वो शहज़ादा मेरे ख्वाबों और तन्हाई का !
जाने कब हटेंगे काले बदरा उस बेरहम शराफत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !! 

अंकिता जैन "भंडारी"
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Kya hum Kamzor hai - Ankita jain

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"क्या सच में हम कमज़ोर हैं"
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मिलाकर हाथ जब खड़े थे हम,
गोरों की सेना से लड़े थे हम !
सीमा के बहार उन्हें खदेड़ा था,
जतलाया था उन्हें की "हिन्दुस्तान" न तेरा था !!

तो फिर क्यूँ आज हम कमज़ोर हैं,
क्यूँ पाले हमने अपने ही घर में चोर हैं !
किसको पता था की कलयुग का चरखा एसा चलेगा,
माँ का अपना लाल ही उसका कातिल बनेगा !!

हम ही तो ज़िम्मेदार हैं इन काले अंग्रेजों की उत्पत्ति के,
आज नहीं रहे हकदार हम अपनी ही संपत्ति के !
न बिगड़ा है कुछ जगा लो अपने दिल में गाँधी और भगत आज,
और उतार कर हाथों की चूड़ियाँ गिरा दो अन्याय पर गाज !!

~~ अंकिता जैन ~~

Saturday, May 21, 2011

Maa ki aas - Ankesh Jain

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माँ की आस 
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                                                खो रही है श्वास भी,

                                                            जो बस इसी विश्वास में
                                                कर सकू में कुछ बड़ा,


                                                            है वो सदा इस आस में

                                                सेकड़ो दुविधा रही,


                                                            फिर भी सदा हँस कर सहा
                                                माँ तेरी हिम्मत से ही 


                                                            मुझको मिली दुनिया यहाँ

                                                दूर तुझसे हूँ तो क्या,


                                                            साँसे मुझे तुझसे मिली
                                                दिख रही है जो छवि ,


                                                            थी तेरी ही काया कभी


                                                आपसे, पापा से ही, 

                                                            सीखा था चलना बोलना
                                                आज रचता हूँ स्वरों को,


                                                             जो कभी सिखला दिया

                                                  तेरी आँखों की नमी में है छिपी ममता सदा
                                     तेरे चरणों से मिली आशीष की धारा सदा
                                                   आज में जो हूँ जहा हूँ तेरा ही में अंश हूँ
                                    माँ तेरे इस अंश में रखना छवि अपनी सदा


                                                                             कृते अंकेश

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Shabdo ki paribhasha - Vikas Chandra Pandey

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शब्दों की परिभाषा - विकाश चन्द्र पाण्डेय
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कुछ रिश्तो की परिभाषा अलग सी होती हैं ,
अधुरें ख्वाबो की अधूरी कहानी होती है .
चाहता हु इन्हें शब्दों में पिरोना ,
पर कुछ यादें रोकती है.

इस परिभाषा की भी एक अलग ही दिशा है ,
इन अनकही बातों की भी एक वजह है .
चाहता हूँ इन यादों को भुलाना,
पर कुछ बातें रोकती है.

सभी ख्वाब कभी पुरें नहीं होते ,
परछाइयों के कभी चेहरे नहीं होते.
चाहता हु इन खाव्बों को पूरा करना,
पर कुछ रातें रोकती है.

शायद इस परिभाषा में कुछ अधूरापन हो,
या फिर मेरी अशिमित सोच का प्रवाह हो.
पर वो बातें आज भी गूंजती है,
वो यादें आज भी याद आती है.
वो सपने आज भी जगातें है ,

वो अनकही बातें आज भी मेरी गलतियां याद दिलाती है.
चाहता हु इन्हें आज भी सुधारना,
पर अब उसकी खुशियाँ मुझे रोकती है.
उसकी दुनिया मुझे रोकती है....

'' विकास चन्द्र पाण्डेय ''
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Kabhi Samjha Hi Nahi - Gaurav Mani Khanal

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कभी समझा ही नहीं...
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प्यार को मेरे तुने कभी समझा ही नहीं,
निगाहों को मेरे तुमने पढ़ा ही नही,
मेरे दिल की धडकन है तू,
पर इस दिल की आवज़ को तुमने कभी सुना ही नही,
न कह सका मुझे प्यार है तुमसे,
और मेरी खामोशी को तुमने समझा ही नही,
मैंने तो तुमको आपना रब माना,
पर मेरे ऐतबार को तुमने कभी समझा ही नहीं,
तुम समझे मे छोड़ चला तुम्हारा साथ,
मुड़कर एक बार भी पीछे देखा ही नहीं,
आज भी लिए निगाहों मे प्यार के मोती खड़ा हु मै उसी मोड़ पर,
पर मेरे इंतजार को तुमने कभी समझा ही नहीं,
मेरी हर साँस मे तुम्हारे लिए दुआ है,
मेरी इबादत को तुमने कभी माना ही नहीं,
चल दिए रूठ कर हमसे तुम इस कदर,
याद फिर हमको कभी किया ही नहीं,
सपने मे भी नही देखा हमने किसी और का चेहरा,
तड़प को मेरे कभी तुमने समझा ही नहीं,
प्यार को मेरे तुमने कभी समझा ही नहीं...

~गौरव मणि खनाल~

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Tum Saath Ho - Gaurav Mani Khanal

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    तुम साथ हो...
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जब कभी भी तुम याद आते हो,
होठो पर मुस्कान,
आखो मे नमी छोड़ जाते हो,
किये थे वादे कितने,
बैठ तारो के संग,
उन ही तारो के साथ बैठाता हु  आज भी,
यकीं है मुझको आते हो तुम हार रात,
बैठने मेरे संग,
भुलाए नही भूलता तुम्हारे यादो का रंग,
मनाये नही मानता मन मेरा की तुम नही मेरे संग,
आगंन की तुलसी मे दिया आज भी जलाता हु,
जानता हु मे आते हो तुम हर सुबह,
मागने दुआ मेरे संग,
बगीचे के फूल आज भी महकते है,
खिलते गुलाब तेरी याद दिलाते है,
बारिश  की बूंद आज भी मन को भाती है,
नाचता हु आज भी मे इन बूंदों के संग,
जानता हु मे आते हो तुम हर सावन,
भीगने बारिश मे मेरे संग,
लोग कहते है तुम अब नही रहे,
मे कहता हु ऐसा कोई पल नही जब संग तुम नही हो,
नादान है नही जानते प्यार क्या होता है,
प्यार केवल संग मे नही प्यार तो विरह मे भी होता है,
वो क्या प्यार करेंगे जो साथ छुटने से टूट जाते है,
प्यार तो वो करते जो प्रियतम के यादो के साथ ही पूरी जिंदगी जी लेते हे,
तुम नही मोजूद यहाँ ये हकीकत हे दुनिया के लिए,
पर मुझे नही कोई मतलब दुनिया की इस हकीकत से,
मैंने  तो रखा हे तुम्हे छुपा के आपने दिल मे,
तुम सदा वही रहोगे  बन दिल की धडकन मेरे लिए...

      ~ गौरव मणि खनाल~

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Wednesday, April 27, 2011

Saccha Pyaar - Omprakash Maandar


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सच्चा प्यार - ओमप्रकाश मांदर
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दौलत भी मिली हमे, शोहरत भी मिली हमे,

फिर भी इस दिल को करार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |

नकली सी हंसी मिली, झूठी सी ख़ुशी मिली,
पर पहले जैसा कहीं संसार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |

इस जहाँ में मित्र बनाए हमने बड़े,
बड़ी निभाई हमने यारियां |
क्या कहें कुछ ऐसे भी मिले हमे,
जो चलाते थे दिल पर आरियाँ |


बड़े इंसान भी मिले, कुछ बेईमान भी मिले,
पर तेरे जितना ऊँचा दिलदार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |
ए दिल - सच्चा प्यार नहीं मिला ||

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