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माँ की आस
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खो रही है श्वास भी,
जो बस इसी विश्वास में
कर सकू में कुछ बड़ा,
है वो सदा इस आस में
सेकड़ो दुविधा रही,
फिर भी सदा हँस कर सहा
माँ तेरी हिम्मत से ही
मुझको मिली दुनिया यहाँ
दूर तुझसे हूँ तो क्या,
साँसे मुझे तुझसे मिली
दिख रही है जो छवि ,
थी तेरी ही काया कभी
आपसे, पापा से ही,
सीखा था चलना बोलना
आज रचता हूँ स्वरों को,
जो कभी सिखला दिया
तेरी आँखों की नमी में है छिपी ममता सदा
तेरे चरणों से मिली आशीष की धारा सदा
आज में जो हूँ जहा हूँ तेरा ही में अंश हूँ
माँ तेरे इस अंश में रखना छवि अपनी सदा
कृते अंकेश
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