_______________________________________________________
निगाह ढूँढता हूँ
_______________________________________________________
अब भी तेरी नज़र में मेरा गुनाह ढूँढता हूँ,
बेदर्द हर पहर में, मौत की पनाह ढूँढता हूँ !
तूने तो सरे आम मुझे गुनेहगार करार दिया,
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!
बंजर हुई ये आँखे मेरी, छू सके वो गागर अश्क भरा,
थाम सके जो सांसे मेरी, मिल जाये मुझे वो शख्स मेरा !
कर सके मेरी ये फरियाद पूरी वो अल्लाह ढूँढता हूँ
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!
बीच समंदर मुझे बुलाकर, जब छोड़ा था तूने साथ मेरा,
आया भी वापस कुछ पल को, तो थामा न तूने हाथ मेरा !
क्यूँ गैरत बनी फिर चाहत तेरी, खुद में वो गुनाह ढूँढता हूँ
जो तुझे तेरी बेफ़वायी दिखादे, वो निगाह ढूँढता हूँ !!
~~ अंकिता जैन " भण्डारी " ~~
_______________________________________________________
good one
ReplyDeleteExcellent :)
ReplyDelete