Thursday, January 12, 2012

Ek Vidambana Badi - Bhuwan Mehta

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एक विडंबना बड़ी
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कैसे समझाऊं तुम्हे अपना ये भारत मैं
यह देश है एक विडंबना बड़ी
होती है यहाँ हर रोज, हर तरफ महाभारत
पर हरण को तन पर चीर नही
उन्नति का गुमान करें, पर विकास का हमें भान नही
हर आबाद दिल्ली पर यहाँ बिछते है भोपाल कई
टूटती सड़कों पर भी करते हैं चक्के जाम
अंधेरे गाँवों में जलती यहाँ धर्म-जाति की आग
बाज़ारों का देश है ये, बिकाऊ लोकतंत्र, कॉमनवेल्थ तक यहाँ
महेंगे ये बाजार है, सस्ते जान और मोबाइल यहाँ
आख़िर कैसे करूँ इस देश को मैं परिभाषित
जहाँ ना अल्लाह की बाबरी हुई, और ना अयोध्या का राम हुआ
कैसे समझाऊं तुम्हे अपना ये भारत
यह देश है एक विडंबना बड़ी, एक विडंबना बड़ी...

~~ भुवन मेहता ~~
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