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फूल और काँटा
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फूल और काँटा
जन्म लेते है एक ही जगह
एक ही पौधा उन्हें है पालता
उन पर चमकता सूर्य भी एक सा
एक सी वह किरणे है डालता
रात में उन पर चमकता चाँद भी एक सा
एक सी वह चांदनी है डालता
मेघ भी उन पर बरसता एक सा
एक सी उन पर हवाएँ भी बही |
एक ही पौधे से लेकर जन्म भी
पर कर्म उनके होते नहीं एक से
छेद कर काँटा किसी की अंगुलियाँ
फाड़ देता है किसी का वर-वसन
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भौरों को अपना अनूठा रस पिला
एक खटकता है सबकी आँख में
दूसरा सदा देवो के सर चढ़ा |
था वही आकाश, किरणे थी वही
सूर्य दोनों के लिए था एक ही
भिन्न थे पर भाव उनके
इसलिए उनकी दशा भी भिन्न थी
ऐ हमारे देश के प्यारे युवक
ठीक ऐसा ही तुम्हारा हाल है
दृष्टी तुम पर पड़ रही संसार की
इस तरफ भी क्या तुम्हारा ख्याल है |
~~ कुसुम ~~
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