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आज अचानक मेरी परछाई से मुलाकात हुई ..
धुंधली रौशनी में कुछ अनोखी सी बात हुई ..
उसके साथ को पाकर एक अजीब सी अनुभूति हुई ..
यादों के खोये हुए पन्नो से फिर मुलाकात हुई ..
तभी कुछ अप्रत्याशित से बात हुई ..
उस परछाई ने मुझे आवाज़ दी ..
प्रश्नों की अविरल धारा से ये मेरी पहली मुलाकात थी ..
ये और कुछ नहीं शयेद मेरे अंतर्मन की आवाज़ थी ..
रात के अँधेरे में वो अजीब सी राह थी ..
वो मेरी मेरे सच से पहली मुलाकात थी ..
फिर भी मन में एक अजीब से हलचल है ..
क्या ये सब सच है ..
या बस आँखों का भ्रम है ...
पर उसकी आवाज़ में कुछ तो बात थी ..
क्या ये सभी मेरे अतीत की बात थी ?? ..
उन प्रश्नों ने मुझे एक नयी राह दी ..
मेरे भटके हुए वर्तमान को एक नयी पहचान दी ..
धुंधली रौशनी में कुछ अनोखी सी बात हुई ..
उसके साथ को पाकर एक अजीब सी अनुभूति हुई ..
यादों के खोये हुए पन्नो से फिर मुलाकात हुई ..
तभी कुछ अप्रत्याशित से बात हुई ..
उस परछाई ने मुझे आवाज़ दी ..
प्रश्नों की अविरल धारा से ये मेरी पहली मुलाकात थी ..
ये और कुछ नहीं शयेद मेरे अंतर्मन की आवाज़ थी ..
रात के अँधेरे में वो अजीब सी राह थी ..
वो मेरी मेरे सच से पहली मुलाकात थी ..
फिर भी मन में एक अजीब से हलचल है ..
क्या ये सब सच है ..
या बस आँखों का भ्रम है ...
पर उसकी आवाज़ में कुछ तो बात थी ..
क्या ये सभी मेरे अतीत की बात थी ?? ..
उन प्रश्नों ने मुझे एक नयी राह दी ..
मेरे भटके हुए वर्तमान को एक नयी पहचान दी ..
ये मेरी परछाई से पहली मुलाकात थी ..
नहीं ये मेरी खुद से पहली मुलाकात थी ..
~ विकास चन्द्र पाण्डेय ~
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thanks a lots for your consideration on my poem.
ReplyDelete@ankita thanks a lot:-)
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