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दौलत का नशा - श्रवण कुमार द्विवेदी "आर्य"
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आज ये दौलत का कैसा नशा छा रहा है
ईमान डगमगा रहा है
इसे पाने के लिए इन्सान इन्सान को खा रहा है
अब सब कुछ दौलत में सिमट गया है
इसकी रफ़्तार में ईमान का दामन घिसट गया है
इज्ज़त, ईमान, इंसानियत
कुछ नहीं बचा सब ख़तम हो गया
यहाँ पैसे के बाज़ार में सब रद्दियों के भाव तुल गया
झूठ, फ़रेब, अत्याचार, बेईमान
सब शान से सर हिला रहे हैं
पैसे की आड़ में इंसानियत को खा रहे हैं
जिसको देखो वही इसके पीछे भाग रहा है
अपना काम साध रहा है
और भ्रष्टाचार अपनी सीमा लाँघ रहा है
अबला की इज्ज़त, नेताओं का राष्ट्रप्रेम
युवाओं का जोश, बुद्धिजीवियों की सोच,
जनता का वोट, खिलाडियों का खेल
सब कुछ यहाँ कौड़ी के भाव बिकता है
आवाम का ईमान यहाँ नोटों में तुलता है
~~ आर्य ~~
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