Monday, February 21, 2011

मेरे मन की बात - गौरव मणि खनाल Mere Man Ki Baat - Gaurav mani Khanal

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कभी कोई मेरे दर्द को भी समझे,
दिल के पिंजरे में बंद मेरे अरमानो को समझे,
उड़ना चाहता हूँ मै भी खुले आकाश मै,
कोई मेरे मन के भावों को समझे |

थक चूका हु मै दुनिया के साथ चल कर,
कोई मेरा हाथ पकड़ मुझे नयी रहा दिखा दो,
बिक गए है मेरे अरमान दुनिया के बाज़ार मे,
कोई मेरे अरमानो को फिर से जगा दो |

नए सपनों को देखने से  डरता है अब मन मेरा,
नए रास्तो मे चलने से थकता है अब तन मेरा,
प्रेम गीत गाने से मौन है अब दिल मेरा,
सोचता हु इस खुदगर्ज़ दुनिया मे कौन है अब अपना मेरा,


खो गया हु कही मै झूठ और बेईमानी के फेरे मै,
हर चेहरा हंस रहा है जूठी हँसी इस मेले मे,
मे भी उन जूठे चेहरों मे शामिल एक चेहरा हूँ ,
मुख से दीखता भोला पर अन्दर मन से मैला हूँ ,

अब ऊब कर इस जूठे भोले पन से,
आपने मन मे फेले इस मल से,
चाहता हु अब निर्मल करना इस धूमिल मन को,
पवित्र करना चाहता हु इस जीवन धन को,
बहुत जी लिया दुनिया के विचारो के साथ,
बहुत रुक लिया पाने आपनो का हाथ,

अब सव्छंद और स्वतंत्र करना,
              चाहता हु इस तन मन को,
जीना चाहता हूँ अब ऐसे,
             दे सकू प्रेरणा आने वाले कल को ..

                                      
            ~ गौरव मणि खनाल ~

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6 comments:

  1. wow!! congrats!! its a good one! :)

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  2. Thank you Kavita pustak for accepting my poem...

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  3. @ Kanchan: Thanks dear.. its always great to hv a supportive frd like u :)

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  4. @Gaurav.. pleasure! :) but we would surely like to read more from you..

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