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देश नहीं चल सकता है - श्रवण कुमार द्विवेदी
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द्वन्द विषाद को छोड़ गर्त में, यदि प्रेमांकुर नहीं पनपता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
नेताओं ने स्वयं स्वार्थ में, देश के हित को भुला दिया
आतंकवाद ने देश को अपने फिर दिल्ली तक हिला दिया
देश बचने खातिर प्रहरी, फाँसी तक में झूल गए
पर आज सभी ने मिलकर उनके, बलिदानों को भुला दिया
देश प्रेम का यदि अब भी जो बादल नहीं बरसता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्मवाद जो छाया है
देश में भड़के दंगे हिंसा, मनुज नहीं बच पाया है
आज नहीं सुरक्षित कोई अपने ही रहखानों में
राम कृष्ण की धरती पर ये, कैसा संकट छाया है
संप्रदाय के युद्ध छोड़ यदि, आती नहीं समरसता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
सुरसा के मुख सी फ़ैल रही,ये भारत की आबादी है
बेरोज़गारी और गरीबी छई ये बर्बादी है
भ्रष्टाचार बुलंदी पर है, नेकी गयी ज़माने से
गाँधी, सुभाष के सपनों वाली क्या ये वही आजादी है ?
देश के हित को सोच अगर हर भारतीय नहीं दहकता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
भारत माता त्रस्त हुई अब इन सब अत्याचारों से
उठो बढ़ो हे भारत पुत्रों, इसे बचाओ मारों से
क्या ये ही मेरी किस्मत है, सोने की चिड़िया सिसक रही ,
भारत में लाओ भाईचारा, देशभक्ति की बहारों से
भारत माँ की सिसकी को यदि कोई, श्रवण नहीं कर सकता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
आतंकवाद ने देश को अपने फिर दिल्ली तक हिला दिया
देश बचने खातिर प्रहरी, फाँसी तक में झूल गए
पर आज सभी ने मिलकर उनके, बलिदानों को भुला दिया
देश प्रेम का यदि अब भी जो बादल नहीं बरसता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्मवाद जो छाया है
देश में भड़के दंगे हिंसा, मनुज नहीं बच पाया है
आज नहीं सुरक्षित कोई अपने ही रहखानों में
राम कृष्ण की धरती पर ये, कैसा संकट छाया है
संप्रदाय के युद्ध छोड़ यदि, आती नहीं समरसता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
सुरसा के मुख सी फ़ैल रही,ये भारत की आबादी है
बेरोज़गारी और गरीबी छई ये बर्बादी है
भ्रष्टाचार बुलंदी पर है, नेकी गयी ज़माने से
गाँधी, सुभाष के सपनों वाली क्या ये वही आजादी है ?
देश के हित को सोच अगर हर भारतीय नहीं दहकता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
भारत माता त्रस्त हुई अब इन सब अत्याचारों से
उठो बढ़ो हे भारत पुत्रों, इसे बचाओ मारों से
क्या ये ही मेरी किस्मत है, सोने की चिड़िया सिसक रही ,
भारत में लाओ भाईचारा, देशभक्ति की बहारों से
भारत माँ की सिसकी को यदि कोई, श्रवण नहीं कर सकता है
तो मेरा दावा है ऐसे में देश नहीं चल सकता है
~~ श्रवण कुमार द्विवेदी ~~
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so true
ReplyDeleteThank you so much...
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