Tuesday, September 18, 2012

Kuch lamhe chura le raaton se - Mamta Sharma

" कुछ लम्हे चुरा लें रातों से "
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कुछ लम्हे चुरा लें रातों से 
छिप छिप कर चलो उड़ जाएँ हम 
इस राग रंग के झंझट से ,
कुछ देर किनारा पायें हम . 
कुछ लम्हे चुरा लें रातों से 

कुछ देर करें बातें अपनी 
कुछ देर सुनें उनकी बातें .
कुछ दर्द के लम्हे हों लब पर 
कुछ हों खुशियों की सौगातें 
कुछ भी ना छिपायें मन में हम 
 कुछ लम्हे चुरा लें रातों से .
कभी करें पुरानी याद नई 
कभी लें आहट आगत की भी 
कभी बुनें नए से स्वप्न ढेर 
कभी ले का आयें सुबह नई 
इन सारी बातों की खातिर 
कुछ लम्हे चुरा लें रातों से 

ओ मेरे बेकल मन तू भी 
कुछ ठौर तो पा ले एक घडी 
यूँ दौड़ता ही जो जाएगा 
एसे तो तू थक जाएगा 
रुक सुन ले इनकी बात अभी 
कुछ लम्हे चुरा लें रातों से 
~~ ममता शर्मा ~~

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Saavan Geet - Mamta Sharma

सावन
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लो सावन आया ,लो सावन आया

जो बारिश पड़ी झड़ी झड पड़ी ,
जो सिमटी पड़ी कली खिल पड़ी.
लो सावन आया हाँ सावन आया 


में सोई पड़ी जो उठ हुई खडी 
अचानक जोरों की बरखा पड़ी 
ये मन घबराया जी मन घबराया 
लो सावन आया हाँ सावन आया 

जो दृष्टि पड़ी कहीं पर खडी 
कोई चुलबुली सी डाली अड़ी
जो गीत सुनाया जी गीत सुनाया 
लो सावन आया हाँ सावन आया 

अचानक कहीं जो बिजली पड़ी 
कड़कती बड़ी ना रूकती झड़ी 
ये तेरी है माया जी तेरी है माया 
लो सावन आया हाँ सावन आया 

~~ ममता शर्मा ~~
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Monday, September 17, 2012

Pyaas Barkarar Rakh - Ashish Pant

प्यास बरकरार रख
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धूप हो कड़ी तो क्या            
तीरगी घनी तो क्या
लक्ष्य का अमृत भी तू            
पायेगा पर इतना तो कर
प्यास बरकरार रख            
तू प्यास बरकरार रख

मंजिलें कभी कभी                
अदृश्य जो लगें तुझे
तू तनिक आराम कर              
एक गहरी सांस भर
आस बरकरार रख                  
तू प्यास बरकरार रख

राह हो, थकान हो                      
बाधाएँ तमाम हों
नींद भी गर ले पथिक                     
जगे हुए ख्वाब संग
रास बरकरार रख                             
तू प्यास बरकरार रख

हाँ, छूटते हैं आसरे                       
हाँ, छूटते हैं काफिले
पर सांस छूटने तलक                    
दिल में हौसलों का तू
वास बरकरार रख                   
तू प्यास बरकरार रख

बस धड़कने से ही नहीं                   
दिल हो जाता दिल है
आदमी बने इन्सान                       
इसीलिए दिल में तू
आभास बरकरार रख                      
तू प्यास बरकरार रख

हर हर्फ़ में जो पीड़ हो                           
वक़्त गूढ़ गंभीर हो
फीके क्षणों की धार में                             
थोड़ी हँसी को घोल के
परिहास बरकरार रख                           
तू प्यास बरकरार रख

गुलशन जब बेनूर हो                           
और वसंत कुछ दूर हो
क्रूर खिज़ाओं में डटकर                         
अपनी आरजूओं के
अमलतास बरकरार रख                          
तू प्यास बरकरार रख

नौ भावों से है बना
ये ज़िन्दगी का चित्र है                            
इक भी कम नहीं पड़े
खुद में नवरसों का तू                        
एहसास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख                       

कल  ही कल की नींव था
कल ही कल का सार है                         
कभी भी ये भूल मत
भविष्य को तू साध पर                         
इतिहास बरकरार रख
तू प्यास बरकरार रख                        

पहले वार में कहाँ                    
कटे कभी पहाड़ हैं
हर नदी मगर मिली                  
अन्तः अपने नदीश से
बस, प्रयास बरकरार रख                  
तू प्यास बरकरार रख

~~ आशीष पंत ~~
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Antardwand - Rishish Dubey


अंतर्द्वंद 

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इस छोर से, उस छोर से
हर ओर ने किसी डोर से
बाँध लिया है चंचल मन
इधर जाऊं की उधर जाऊं
जाने ये कैसा मकडजाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

है राम की या इस्लाम की
जाने किसके नाम की
है धरा और किसके हम
मंदिर जाऊं या मस्जिद जाऊं
जाने ये कैसा धरमजाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

विज्ञानं में और ध्यान में
स्वाभिमान में और अपमान में
है अंतर क्या बड़ी उलझन
ये क्यूँ वो क्यूँ नहीं
जाने ये कैसा बवाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

है भूत क्या और भविष्य क्या
परोक्ष क्या, प्रत्यक्ष क्या
है नियति क्या, क्या जीवन
कल हो चूका या कल होगा
जाने काल की कैसी चाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

क्यूँ ख़ुशी और अश्रु में
जीवन में और म्रत्यु में
भेद करते हैं अपन
क्यूँ जियूं, क्यूँ ना मरुँ
जाने ये कैसा सवाल है
जाने ये कैसा अंतर्द्वंद ||

-- ऋषीश दुबे 'राही'
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Jeevan Mantra - Ajay Tiwary

 जीवन-मंत्र
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उच्चाकांक्षाओँ के बोझ तले
मैं निस्पंदित मृतप्राय हुआ,
बुलंदियों की होड़ा-होड़ी में
मानव से जैसे मशीन हुआ।

        सुरसा के मुख सी बढ़तीं
        मेरी इच्छाओं  का अंत  नहीं,
        भोग-विलास की पृथ्वी पर
        कोई साईं सरीखा सन्त नहीं।

कालचक्र के व्यूह में  मेरा
भूत भविष्य को खींच रहा,
अग्रगति में अवरोध अतीत
निर्मम हाथों में भींच रहा|

        मंज़िल आँखों से ओझल
        भटका  पंथी डग  भूल रहा,
        मरीचिका  को लक्ष्य किये
        प्यासा ज्यों जल को ढूंढ रहा।

इच्छित कस्तूरी नाभि में उसकी
पर घन-वन में खोज रहा,
अज्ञानी, भ्रमित यह मृग
क्यों  खुद  को नहीं टटोल रहा?

        यदि व्यर्थ खनिज-धातु का ढेला
        अग्निस्नान कर स्वर्ण हुआ,
        तो लू, अंधड़, धूप को मैं  भी
        सह  करके आज मनुष्य हुआ।

लालसाओं को तज कर अब
आज हठात मैं स्वतंत्र हुआ,
गीता का  उपदेश ही  जैसे
आज  अचानक  मंत्र हुआ।

        फल  की  चिन्ता  थी  दुश्चिन्ता
        कर्मयोग  से  ध्यान हटा था,
        क्यों स्वर्थपर जीवन जीता था
        क्यों कृष्ण से अपना ध्यान बंटा था?

सफलता की परिभाषा अब बदली
बदले इसके मानदण्ड,
जीने का  कारण अब मिला
रह गया न कोई अंतर्द्वंद।

        पहले सफलता के पीछे मैं भागूं
        अब सफलता मेरे पीछे है,
        पहले जय में  भी पराजय
        अब  पराजय में  भी जय है।


                                                - अजय तिवारी
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Naadan Khamoshi - Rishish Dubey

नादान खामोशी 
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जहाँ शोर है वहां तू ही तू 
तू मिले तो हो शुरू गुफ्तगू
तेरा घर कहाँ, क्या तेरा पता
सच सच बता, सच सच बता
कभी आके तू मुझसे भी मिल
ये आरज़ू करे मेरा दिल
की मुझको बता दे राज़ वो 
जो दबी सी है इक बात वो
तू चुप है मगर ये शोर क्यूँ
खीचें मुझे सब ओर क्यूँ 
सब ओर क्यूँ सब ओर क्यूँ
अब कैसे हो 'राही' बेखयाल 
ज़िन्दगी कई सवालों का जाल
सीने में है तूफ़ान सा
हर पल लगे बेईमान सा
सब मिट गया सब मिट गया
धोखा हुआ मैं लुट गया 
ये भाग दौड़ ये जुस्तजू 
कामयाबी का जूनून 
हार जीत की आरजू 
मुझको नहीं, मैं क्या करूँ
मैं क्या करूँ मैं क्या करूँ
बस हुआ मैं थक गया
तू नहीं मिली मैं जहाँ गया
जवाब भी मुझको बता
अपने दिए सवालों का
क्यूँ चुप है इस तरह
असली क्या है चेहरा तेरा
मुझे यूँ तनहा न कर
ढूँढता तुझे फिर रहा
आ भी जा अब आ भी जा 
ऐ नादान ख़ामोशी 
ऐ नादान ख़ामोशी 
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Kaash wo taara mil Jata - Rishish Dubey "Raahi"

काश वो तारा मिल जाता
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एक किनारा ,एक लहर 
एक ही माझी मिल जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

दूर नहीं है वो मुझसे
मुझको अब भी दिखता है
पा लेता उसको मैं शायद
कोई बढ़ावा मिल जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

था खाली ही जब घर मेरा
खाली खाली हर मंजिल
एक नगर , और एक डगर
कैसे 'राही' थम जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

हूँ आवारा मैं तो क्या
वो तारा भी आवारा है
जिस शब्-ए-महफ़िल में मैं बैठूं
मुझपे हंसने आ जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

बचपन में थी बात सुनी
वो तारा हर शब् गिरता है
मिल जाता जो साथ तेरा
तेरे दामन में गिर जाता
वो तारा मुझको मिल जाता
तेरे दामन में गिर जाता
वो तारा मुझको मिल जाता

हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता ||

 ~~ ऋषीश   दुबे ~~
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Aaj Ka Manas - Dr Pawan Kumar "Bharti"



Jo darta nahin - Dr. Pawan Kumar Bharti