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हमारे बाबूजी
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मौन स्वयं में डूबे - डूबे
खड़े पर्वत से ऊंचे
सागर से गंभीर दिखें और
लगते भीषण रूखे
पर फिर भी आते ही घर में
आ जाती है हंसी
और लिए आते हैं संग वे
खूब ही सारी ख़ुशी
चुन्नू कभी- कभी ये मुन्नू
आगे पीछे डोलें
डोलती राधा और अनुराधा
माँ भी संग ही डोलें
पिता जी फिर भी अडिग पड़ी
चट्टान की भाँति बोलें
पूँछें दिन भर की बातें और
किया है क्या हम सबने
गर जो पढ़ाई ना की हो तो
कान पकड़ लें सबके
और दिखा दें तारे दिन में
जबाँ अगर हम खोलें
पर इस पर भी हम सबको ही
मान बड़ा है उन पर
बाहर जब जाते हैं उन संग
झुकें सलाम करें सब
ऐसे अपने बाबूजी पर
गर्व हमें है होता
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