Friday, August 17, 2012

Apna watan - Kusum

अपना वतन 
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अपनी जमीन अपना गगन , बहती सुगन्धित मोहक पवन

इसके नज़ारे चुराता है मन, सबसे प्यारा है अपना वतन
उत्तर में इसके हिमालय खड़ा, दक्षिण में सागर का पहरा अड़ा
पूरब में इसके खाड़ी बड़ी , पश्चिम में अर्णव करे चौकसी
हम तो सभी से इतना कहे हिन्दू मुसलमान मिल के रहे
नफरत की आंधी अब न चले प्रेम का दरिया दिल में बहे
अब वतन में रहे बस अमन हर बुलंदी पे चढ़ता रहे अब वतन
लक्ष्य से विचलित ना हो मन रखना सुरक्षित अपना वतन
शत्रु की चाल को करके विफल दिखला देगे हम अपना बाहुबल
बस लबो पे रहे हरदम सबसे प्यारा है अपना वतन
सबसे प्यारा है अपना वतन सबसे न्यारा है अपना वतन
इसके चरणों में मेरा नमन इसपे वारेगे हम जान ए तन
अपना वतन अपना वतन सबसे प्यारा है अपना वतन

जयहिंद जयभारत !!


-       कुसुम 

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Bhikari - Mamta Sharma


 भिखारी
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हाथ उठा निरीह सी  आँखें ,पर अन्दर हैं कोमल पांखें
खोल पंख ये उड़ना चाहें , लेकिन पंख बिखर हैं जाते
 
हंसी भी है पर खोई - खोई ,सांसें भी पर सोई - सोई
कहाँ गया वह बचपन भोला ,कैसे मिले स्कूल का झोला .
 
सीखे सब गुर चाल ढिटाई, कौन है मीठा कौन मिठाई
जब देखे वे बहन व् भाई ,आँखें मेरी यूँ भर आईं
 
क्यों ये जीवन जीने आये ,क्यों इच्छाएं मारते जाएँ
क्या अपराध हुआ है इनसे , सुख सारे क्यों छीने इनसे
 
कैसे दूर करूँ ये सब दुःख ,कैसे हांसिल हों इनको सुख
 या रब दिखला कोई आशा ,मेरे मन कि ये अभिलाषा
 
रख अपने ही पास ये सब कुछ ,भेज न पृथ्वी पर सब ये दुःख
 तू ही खेल वहीँ ये खेला,ले जा दुखों का अब ये रेला
 
वर्ना धरती फट जायेगी तब भी समझ तुझे आएगी
काश तू इसको समझ भी पाता, दुःख का अर्थ तुझे भी आता

- ममता शर्मा 

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Bula lo in megho ko - Mamta Krishnatrey

"बुला ले इन मेघों को "
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सूर्य तूने सोख - सोख नीर बना मेघों को ,
भेजा कहाँ बता अब ,बता दे इन मेघों को

भेज उन तक एक पाती ,
अपनी धरती प्यासी
तनिक ज़ोर डांट लगा
बुला ले इन मेघों को

घनन  घनन घनन करें
सुनने को  मन तरसे
कहाँ जाय मुए बरसे
बुला ले इन मेघों को

धरा बनी बंजर है
कृषक सब ही बेघर हैं
बिके ग्राम खेतन हैं
बुला ले इन मेघों को

बाढ़ों को वहीँ छोड़
नदियाँ से मुख को मोड़
सागरों से नाता तोड़
बुला ले इन मेघों को

खेतिहर तो नष्ट हुए
जमींदार भ्रष्ट हुए
जन-जन को कष्ट हुए
बुला  लें मेघों को

पाईप लाइन सूख गई
पोर - पोर चूस गई
टेंकर पे लूट भई
बुला ले इन मेघों को

कुछ  तो तू कर मदद
तू ही तो एक अदद
क्यूंकर होगी रसद
बुला  ले इन मेघों को

बहना की शादी खड़ी
कुल की मर्याद बड़ी
विकट घडी आन पड़ी
बुला ले इन मेघों को

बच्चे खड़े आस करें
बरसो ! पुकार करें
बड़े कैसे प्यार करें
बुला ले इन मेघों को

मंदिर के ठाठ बढे
पंडित के भाग चढ़े
लूटन को माल खड़े
बुला ले इन मेघों को

गर ना तू पुकारेगा
सावन भी हारेगा
भादों तो मारेगा
बुला ले इन मेघों को

जाने ना दे मेघों को
खींच लें मेघों को
धर पकड़ इन मेघों को
बुला ले इन मेघों को

कैद कर इन मेघों को
बरसन दे मेघों को
जाने ना दे मेघों को
बुला ले इन मेघों को


- ममता कृष्णात्रेय 



Aaj kuch likhne ka dil kar raha - Kuldeep Sahoo


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आज कुछ लिखने का दिल कर रहा
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 आज कुछ लिखने का दिल कर रहा है...
आंखो मे छिपा है कोई सागर जो खुद ही बह रहा है...
अनचाहा दर्द जिसे दिल खुद ही सह रहा है...
आज फिर कुछ लिखने का दर्द कर रहा है...

हर गम के पीछे अब बहाना एक ही है...
दिल है एक तरफा रास्ता आना जाना एक ही है...
पर जो अंदर आज्ञा उसे बात बताना एक ही है...
इस रास्ते पर से लौट कर जाना एक ही है...

किसी के आने और जाने पर हक़ जाताना मुश्किल है...
किसी के आने की खुशी और जाने का गम जाताना भी मुश्किल है...
किसी के लौट जाने पर अफसोस जाताना मुश्किल है...
किसी के चले जाने के बाद उस रास्ते पीआर चल पाना मुश्किल है...

छोड़ वो पुराना रास्ता कोई नया देख अब हर कोई कह रहा है...
शायद कोई अपना उस रास्ते पर रहा है...
पुराना रास्ता है मुझको प्यारा ये मेरा दिल कह रहा है...
आज फिर कुछ लिखने का दिल कर रहा है...

" कुलदीप साहू "
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Hamare Babuji - Mamta Sharma

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हमारे बाबूजी 
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मौन स्वयं में डूबे - डूबे
             खड़े पर्वत से ऊंचे 
सागर से गंभीर दिखें और 
               लगते भीषण रूखे 

पर फिर भी आते ही घर में 
        आ जाती है हंसी 

और लिए आते हैं संग वे 
               खूब ही सारी ख़ुशी 




चुन्नू कभी- कभी ये मुन्नू 

           आगे पीछे डोलें 
डोलती राधा और अनुराधा
                माँ भी संग ही डोलें 

पिता जी फिर भी अडिग पड़ी
                   चट्टान की भाँति बोलें 

पूँछें दिन भर की बातें और 
                        किया है क्या हम सबने 

गर जो पढ़ाई ना की हो तो 
                     कान पकड़ लें सबके 

और दिखा दें तारे दिन में
                      जबाँ अगर हम खोलें 




पर इस पर भी हम सबको ही

                     मान बड़ा है उन पर 

बाहर जब जाते हैं उन संग 

                         झुकें सलाम करें सब 

ऐसे अपने बाबूजी पर  
                   गर्व हमें है होता 

" ममता शर्मा "
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Mitti ki chitthi - Vivekanand Joshi

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"मिट्टी की चिट्ठी"
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मिट्टी से आई चिठ्ठी,बस यही मुझ से  कहती है,
कि कुछ नजरें आज भी तेरे इंतजार में, रास्ते पर टिकी रहती हैं,
फीके लगते हैं वो रोशनी,वो रंग, वो आसमान में,
बेमन ऊङती पतंग,टप टप करती, बारिश की बूंदे,
आज भी तुझे भिगोने आती हैं,

नाम न पता तेरा, वो अंजान यूँही बरस जाती हैं,
रात में तेरा ख्याल नींद उङा देता है,
अब तो अँखियाँ तेरे दीदार को तरस जाती हैं,
खुशबू वो सौँधी सौंधी पानी से भीगी मिट्टी की,
क्या वहाँ भी मन को भाती है,

यहाँ तो नजरंदाज करते थे ,क्या वहाँ इसकी याद सताती है,
मिट्टी से आई चिठ्ठि मुझे हर पल तेरी याद दिलाती है,
अगर दूरी है,समंदर भर की तो नजदीकी भी है पल भर की
पर एहसास वो छूने का,वो इतमिनान,साथ होने का
वो हवा नही देती है,जो तुझ से टकराकर मुझ तक बहती है,
मिट्टी से आई चिट्ठी......
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    -विवेकानंद जोशी
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Kuch Log Masiha kehte hain - Ashish Pant


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कुछ लोग उसे मसीहा कहते हैं
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सरापा इश्क ही से भरपूर था वो,
कुछ लोग उसे मसीहा कहते हैं |



अंदाज़ उन के भी अजीब कम नहीं,
कभी निहां कभी नुमाया रहते हैं |



उनके दरमियाँ बस मोहब्बत ही थी,
बाकी कहें, कैसे इक दूजे को सहते हैं |



आखिर डूब गया, वो जो कहता था,
कि आ चल दोनों संग संग बहते हैं |



वक़्त धीमे धीमे रिसता ही जायेगा,
ऐसे बाँध यक-ब-यक नहीं ढहते हैं |

" आशीष पंत "
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