Thursday, January 12, 2012

Fool Aur Kaata - Kusum

 ____________________

फूल और काँटा
____________________

फूल और काँटा
जन्म लेते है एक ही जगह
एक ही पौधा उन्हें है पालता
उन पर चमकता सूर्य भी एक सा
एक सी वह किरणे है डालता
रात में उन पर चमकता चाँद भी एक सा
एक सी वह चांदनी है डालता
मेघ भी उन पर बरसता एक सा
एक सी उन पर हवाएँ भी बही |

एक ही पौधे से लेकर जन्म भी
पर कर्म उनके होते नहीं एक से
छेद कर काँटा किसी की अंगुलियाँ
फाड़ देता है किसी का वर-वसन
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भौरों को अपना अनूठा रस पिला
एक खटकता है सबकी आँख में
दूसरा सदा देवो के सर चढ़ा |

था वही आकाश, किरणे थी वही
सूर्य दोनों के लिए था एक ही
भिन्न थे पर भाव उनके
इसलिए उनकी दशा भी भिन्न थी
ऐ हमारे देश के प्यारे युवक
ठीक ऐसा ही तुम्हारा हाल है
दृष्टी तुम पर पड़ रही संसार की
इस तरफ भी क्या तुम्हारा ख्याल है |

~~ कुसुम ~~
____________________


Zakhm Hriday Ke Kured Raha - Azad Bhagat

______________________

जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
______________________

आज मैं बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

जज्बातों के कुछ बंधन है
जो देते मुझको उलझन है
उलझन में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

मैं भी कैसा दीवाना था
औरो में खुश रहता था
अपनों में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

~~ आजाद भगत ~~
______________________

Ek Vidambana Badi - Bhuwan Mehta

____________________

एक विडंबना बड़ी
____________________

कैसे समझाऊं तुम्हे अपना ये भारत मैं
यह देश है एक विडंबना बड़ी
होती है यहाँ हर रोज, हर तरफ महाभारत
पर हरण को तन पर चीर नही
उन्नति का गुमान करें, पर विकास का हमें भान नही
हर आबाद दिल्ली पर यहाँ बिछते है भोपाल कई
टूटती सड़कों पर भी करते हैं चक्के जाम
अंधेरे गाँवों में जलती यहाँ धर्म-जाति की आग
बाज़ारों का देश है ये, बिकाऊ लोकतंत्र, कॉमनवेल्थ तक यहाँ
महेंगे ये बाजार है, सस्ते जान और मोबाइल यहाँ
आख़िर कैसे करूँ इस देश को मैं परिभाषित
जहाँ ना अल्लाह की बाबरी हुई, और ना अयोध्या का राम हुआ
कैसे समझाऊं तुम्हे अपना ये भारत
यह देश है एक विडंबना बड़ी, एक विडंबना बड़ी...

~~ भुवन मेहता ~~
____________________