Sunday, January 16, 2011

Mere Shyam - Ankesh मेरे श्याम  - अंकेश 

_______________________________

कुछ पनघट से लाकर छोड़ा

कुछ अंखियो से पाकर जोड़ा

देख श्याम की राह में व्याकुल

गोपी का जल हुआ न थोडा

डूब गया दिन हुई है रतिया

लौट चली अब सारी सखिया

बोलो मेरे श्याम सलोने

ओर करू में कितनी बतिया

कही बावरी रात का घूघट

मुझको अपने अंक न ले ले

नटखट हुई चांदनी देखो

अपने सारे भेद न खोले



इन बिखरी आँखो का काजल

अर्धविप्त नयनो से बोले

बनी श्याम की राह में व्याकुल

इन नैनो से श्याम न खो दे

चली बावरी पवन भी देखो

मंद सौम्य सी ध्वनि सुनाती 

कही श्याम की बंसी पाकर

मुझ पर तो न रोब जमाती

उठी दिवा सी स्वेत किरण जो

इंदु छवि है मेरे उर की

आलंगन अधिकार अधूरा

आकर्षित अमृत अनुभेरी 





नयन ताकते तेरी सीमा 

निशा चली अब अपने डेरे

देख रवि कि किरण क्षितिज पर

भंवरो ने भी पंख है खोले 

बनी विरह कि बेधक ज्वाला

उषा का आह्वान कराती

अंधियारे से ढके विश्व को

अपनी लाली से नहलाती

कही श्याम कि चंचल लीला

निशा नीर सी आई हो 

सम्मुख होकर भी गोपी से 

वह तस्वीर छिपाई हो

उठी सुप्त सी कोई छाया

चली कही वो अपने डेरे

छिपी लालिमा अधर में जाके

यमुनाजल रवि किरणो से खेले

_______________________________

No comments:

Post a Comment