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एक आवाज़ - अंकिता जैन (भंडारी)
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अन्ना हज़ारे की उठती आवाज़,
सत्ता पर जैसे गिरी हो गाज़ !
बुना उन्होंने ने एसा फंदा,
सरकार को जिसने कर दिया नंगा !!
पर हम भी सरकार से कम नहीं,
बिन अलार्म जगते नहीं !
कभी गाँधी जी तो कभी अन्ना हज़ारे,
चलते नहीं कभी हम बिना सहारे !!
देर से ही सही मगर अब तो नींद से जागो,
खाना पानी छोड़कर अब बस अन्ना के पीछे भागो !
ना रखना डर मन में की नौकरी जाएगी ,
क्यूंकि घोटाले ऐसे ही बड़ते रहे, तो वो ऐसे भी नहीं बच पायेगी !!
जरुरत है अब स्वप्न निद्रा तोड़ने की,
आगे बढकर हाथ से हाथ जोड़ने की !
अन्ना हज़ारे को हमारी नहीं बल्कि हमे उनकी ज़रूरत है,
दिखाना है मिलकर सरकार को क्या लोकतंत्र है !!
~~ अंकिता जैन ~~
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Thank you put my poem on homepage..:)
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