Wednesday, April 27, 2011

Saccha Pyaar - Omprakash Maandar


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सच्चा प्यार - ओमप्रकाश मांदर
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दौलत भी मिली हमे, शोहरत भी मिली हमे,

फिर भी इस दिल को करार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |

नकली सी हंसी मिली, झूठी सी ख़ुशी मिली,
पर पहले जैसा कहीं संसार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |

इस जहाँ में मित्र बनाए हमने बड़े,
बड़ी निभाई हमने यारियां |
क्या कहें कुछ ऐसे भी मिले हमे,
जो चलाते थे दिल पर आरियाँ |


बड़े इंसान भी मिले, कुछ बेईमान भी मिले,
पर तेरे जितना ऊँचा दिलदार नहीं मिला |
बहुत कुछ मिला तेरे जाने के बाद हमे,
पर कहीं भी तेरे जैसा प्यार नहीं मिला |
ए दिल - सच्चा प्यार नहीं मिला ||

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Chahat Sukoon Ki - Ankita Jain



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चाहत सुकून की
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हम बेठे थे उस कश्ती में,
               जिस कश्ती में पतवार ना थी !
देखी मंजिल उस खंज़र में,
                जिस खंज़र में भी धार ना थी !!


सपने तो बहुत सजाने थे,
                पर पलकों ने नामंज़ूर किया !
ये उन लम्हों के मंसूबे थे,
                        कि ख़्वाबों को ताला लगा दिया   !!
चाबी टांगी उस खूँटी पर,
                जो खूँटी बिन दीवार क़ी थी !
पाने भी चढ़े उस सीढ़ी पर,
                        जिस सीढ़ी में कोई लकार ना थी !!


माना अब तक कुछ मिला नहीं,
            पर संतुष्टि ऐसा शब्द  मिला !
जो खुदमे ही सम्पूर्ण नहीं,   
                          जिसने चाहा उसे न कभी आराम मिला !
हमने भी पाने वो राह चुनी,
                 जहाँ हर कदम पे दूरी बढ़ती थी !
मंजिल बस होती थी दुगनी,
                     पर हर साँस पे  उम्र तो  घटती थी !!

अब फिर पाना चाहूँ वो जीवन,
                     जहाँ थोक में परियाँ मिलती थीं !
कागज़ के फूल भले ही थे,
                  पर खुशबु असल महकती थी !
पर अब हम बैठ चुके उस कश्ती पर,
                  जिस कश्ती में पतवार ना थी !
देखी मंजिल उस खंज़र में,
                   जिस खंज़र में भी धार ना थी !!

~~ अंकिता जैन~~

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Chahat Ki Tapish - Ankita Jain (Bhandari)


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चाहत की तपिश - अंकिता जैन
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निकलता है लेकर चाहत-की-तपिश,
कि कभी तो उसका दीदार होगा !
पूरी होगी इन निगाहों की ख्वाहिश,
और पलकों को आराम होगा !

गुज़रता है वक़्त पर जब,ना मिलती कोई आहट !
तो बेसब्र किरणों में भी ,बड़ती है गर्माहट !!
सुलझा सा मन अब बसेरा उलझे ख़यालों का होगा,
मिलेगा दीदार या फिर आलम बेवफ़ाई का होगा !
पूरी होगी आखों की ख्वाहिश और पलकों को आराम होगा !!

अब तक ना आई, कोई खबर !
सिमटने लगी है अब, हर तरफ बिखरी नज़र !!
पर वो दीवाना आज फिर यही कहकर आख़िरी साँस लेगा -
मेरे इंतज़ार का सिलसिला ना कभी ख़तम होगा!
कल आऊंगा फिर इसी उम्मीद में उसका दीदार होगा !!
पूरी होगी आँखों की ख्वाहिश और पलकों को आराम होगा !!

~~ अंकिता जैन~~
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Thursday, April 21, 2011

padhai kar siyu - Omprakash Mandaar


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 हूँ पढाई कर स्यूं  - ओमप्रकाश मंदार
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बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !
छोटी उमर में ब्याव करयो, म्हारो जीव घणो दुख्लायो,
म्हारी भावना मिले रेत, क्यूँ हाथां जुलम कमायो !
बापू मत ले राड़ उधारी, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

पढना की जद रुत आवे, घर की सोच अकावे,
अनपढ़ रहयाँ मानखो, धुड में मिल जावे,
बैठ्यो जीवन भर पछतावे, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

पढ़यां "फुलियो" बणगयो फोजी, "राणीयो" बणयो पटवारी,
अनपढ़ रहियो "लालियो", बो तो फिरे बकरियां लारी,
बो तो करे गधे सुं यारी, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

पढ़यां "कालियो" बणग्यो कलेक्टर, जाण दुनिया सारी,
रेवण नै बंगलो मिलग्यो, फिरण नै जिप्सियाँ न्यारी,
बो तो ऐस घणी मनावे, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

पढ़यां "दुलियो" बणग्यो डाक्टर, हुग्यो मालामाल,
अनपढ़ रयां कुहावे "पणियो"", पढ़यां ""पन्नालाल"",
"सिरियो"-"श्रीराम" कुहावे, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

अनपढ़ "नाथू" गी छोरी गै, टाबर दरजन सुं भी पार,
पाणी लेवण जद बा जावे, लारे रवे सगली लंगार,
बिने शरम घणी ही आवे, हूँ पढाई कर स्यूं !
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

जमीदार देवे एक हज़ार, अंगूठा बीस लगाय,
बापू गो सिर हालण लाग्यो, बात समझ म आय,
मूलकण लागी मन मे म़ाऊ, हूँ पढाई कर स्यूं!
बापू मत कर मेरो ब्याव, हूँ पढाई कर स्यूं !!

~~ ओमप्रकाश मंदार ~~
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Aadmi Ne Naap Daali - Sankatha Prasad Dwivedi

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आदमी ने नाप डाली 
   :- शंकथा प्रसाद द्विवेदी  "विनोदी "
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आदमी ने नाप डाली चाँद तक की  दूरियां ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है |
सागरों के पाँव डाली आज हमने बेड़ियाँ ,
आंसुओं की थाप पाना पर अह्बी तक शेष है |

यन्त्र स्वर में दब गयी हैं धड़कने इंसान की ,
अब न कोई राह आती अडचने ईमान की |
हम प्रगति के नाम पर अब बढ़ रहे कुछ इस तरह,
चकित होकर देखती हैं हरकतें शैतान की |

हम बढ़ने जा रहे आदिशक्ति  की चिंगारियां,
धुंआ मन ka  दूर करना पर अभी तक शेष है |
आदमी ने नाप डाली चाँद तक की दूरियाँ ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है |

भावनाओं के लिए यूँ तो बनाये ताज तक ,
दर्द लेकिन झोपड़ी का हम न समझे आज तक |
यीशु गौतम गंध  सब दे गए सन्देश अपने,
पर कहा अब गूंजती उनकी कही आवाज तक |

विश्व में बजने लगी जनतंत्र की शेह्नाइयां ,
भूक को चन्दन लगाना पर अभी तक शेष है |
आदमी ने नाप डाली चाँद  तक की दूरियां ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है ||



Tuesday, April 12, 2011

Yatharth - Vikas Chandra Pandey

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यथार्थ
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कल मैंने चांदनी रात को येथार्थ में देखा..

उसकी प्रकाश को धरातल पर देखा...

इस छनिक प्रकाश में जो आवेग था...

उससे कई जयादा मेरे विचारो का वेग था..

उस प्रकाश का वास्तविक श्रोत तो कोई और था...

पर मेरे विचोरों का श्रोत मै खुद था ...

इस प्रकाश का अंत तो नजदीक था ...

पर मेरे विचारो का धरता ही अतीत था...

फिर एक नई रात का आगमन हुआ ...

पर यह निरीह प्रकाशविहीन  हुआ..

एक और इन्तजार का आगाज़ हुआ..

फिर चांदनी रात का आभास हुआ...

ये ही जीवन का यथार्थ है ...

हर अन्धकार के पश्चात प्रकाश हे प्रकाश है...

~~ विकास चन्द्र पाण्डेय ~~

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Anna hazare ki awaaz - Ankita Jain (Bhandari)


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एक आवाज़ -  अंकिता जैन (भंडारी)

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अन्ना हज़ारे की उठती आवाज़,
सत्ता पर जैसे गिरी हो गाज़ !
बुना उन्होंने ने एसा फंदा,
सरकार को जिसने कर दिया नंगा !!

पर हम भी सरकार से कम नहीं,
बिन  अलार्म जगते नहीं !
कभी गाँधी जी तो कभी अन्ना हज़ारे,
चलते नहीं कभी हम बिना सहारे !!

देर से ही सही मगर अब तो नींद से जागो,
खाना पानी छोड़कर अब बस अन्ना के पीछे भागो !
ना रखना डर मन में की नौकरी जाएगी ,
क्यूंकि घोटाले ऐसे ही बड़ते रहे, तो वो ऐसे भी नहीं बच पायेगी !!

जरुरत है अब स्वप्न निद्रा तोड़ने की,
आगे बढकर हाथ से हाथ जोड़ने की !
अन्ना हज़ारे को हमारी नहीं बल्कि हमे उनकी ज़रूरत है,
दिखाना है मिलकर सरकार को क्या लोकतंत्र है !!

~~ अंकिता जैन ~~
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Saare Bandhan Tod Ke - Abhishek "Shekher"

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सारे बंधन तोड़ के तुझको आना होगा आज प्रिये 
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सारे बंधन तोड़ के तुझ को आना होगा आज प्रिये ,
सारे बंधन तोड़ के तुझ को आना होगा आज प्रिये ....
कितनी रातें करवट लेकर जगा हूँ तेरी यादों मैं,
तड़प नज़र आती है तेरी प्यारी प्यारी सी बैटन मैं ,
मुझे पता है तुमको दर है अपने पकडे जाने से ,
पर यह बाद्नामी अच्छी होगी घुट घुट के मर जाने से ,
पाप नहीं यह पुण्य प्रवाह है क्यों करती हो लाज प्रिये,
सारे बंधन तोड़ के तुझको आना होगा आज प्रिये |

मैं हूँ भाषा ,तुम हो शैली | तुम नैया, पतवार हूँ मैं ,
तुम हो रंग किसी मूरत का , और उसका आकर हूँ मैं ,
विरह की अग्नि मैं साँसें सांस नहीं ले पति हैं,
तुम हो मेरा प्यार प्रियतम और तुम्हारा प्यार हूँ मैं,
बिन उल्फत कहे की साँसें , बिन योवन कहे का जीवन,
बिन तेरे कहे की उल्फत बिन तेरे कहे का योवान ,
योवन की इस सारंगी पर छेड़ो तो कोई साज़ प्रिये ,
सारे बंधन तोड़ के तुझको आना होगा आज प्रिये |

ऐ चाँद सुनो तुम मेरा कहना ,  आज ज़रा खामोश ही रहना,
विरह की लम्बी साड़ों का पूरा होना है एक सपना ,
वो जब आयें छुप जाना तुम , देख हमें न ललचाना तुम ,
हम निकलें हैं प्यार को पाने , एक दूजे मैं गम हो जाने ,
तुम क्या जानो मदहोशी को , दिल की बातें दिल ही जाने ,
एक दूजे मैं खो जाने का कर दो अब आगाज़ प्रिये ,
सारे बंधन तोड़ के तुझ को आना होगा आज प्रिये |


~~ अभिषेक जैन "शेखेर" ~~

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Friday, April 8, 2011

Hum Teri Aulaad - Puneet Jain


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हम तेरी औलाद - पुनीत जैन
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 हम तेरी औलाद
करते है फ़रियाद
सब परिवार के साथ है 
हम क्यू है अनाथ?

कभी कुदरत ने तो कभी इंसाने ने 
हर और तबाही मचाई है 
कही पर भूकंप आया 
तो कही पर नदियों में बाद आई है 
किसी ने सम्प्रदैक उन्माद बढाया 
तो किसी ने बारूदी अन्ताख फैलाया |

धरती फटी घर टूटे अपनों से अपने छुते 
बचा न कोई साथ हम हो गये अनाथ
हम भी पढना कहते है 
डॉक्टर,वकील या इंजिनियर बनना चाहते  है
रोटी कपडे और छत की हमारी भी है इच्छा 
फिर क्यू लेते हो हमारी कठिन परीक्षा 

किसके आगे फैलाई हाथ किससे करे फ़रियाद 
किसको झुकाए माथा कौन है जो रखेगा सर पर हाथ
माँ की ममता बाबा का दुलार
भाई बहिन का प्यार पाने को हम है बेकरार |

भेड़ों की तरह है हमारा हाल 
सब करते है किनारा, नहीं देता कोई सहारा
मेले और फटे कपड़ो से ढकते है तन्न
सहते है गर्मी और ठिठुरन 
हम नहीं रह पाते कभी सुकून से
क्यू आज महंगा है पानी भी खून से 

सहकर सूरज की धुप और पेट की भूक
शारीर गया है सुख, मत करो दिल पर आघात
हम नहीं फौलाद हम तेरी औलाद
करते है फ़रियाद !!!

~~ पुनीत जैन ~~
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Uljhe Uljhe Se Sawaal - Puneet Jain

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उलझे उलझे से सवाल - पुनीत जैन

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उलझे उलझे से कुछ अनकहे से सवाल है मेरे
बचपन से जो मेरे दिल में पलते रहते है
पहले भी अक्सर में खुदसे पूछा करती थी
जवाब कभी नहीं मुझे मगर मिल पाते थे ..??

माता पिता की में लाडली रही दिल की रानी बनी रही
हर पल उनके प्यार के छाव में ही तो में पली
भैया बड़ा शरारती था सताता रहता था सबको
लेकिन फिर भी क्यू उसको कभी किसी की डांट नहीं पड़ी .??

रात रात भर बहार घूमता दोस्तों संग बतियाता
मोबाइल के बिल से उसके पापा का सर घूम जाता
लेकिन मेरे सिर्फ महीने में एक बार पिक्चर चले जाने से
फ़िज़ूल खर्ची कैसे हो जाती… ये में कभी समझ नहीं पाती..??

भैया तो जो चाहे खाए उसकी पसंद का बने सब कुछ
मुझे सब्जी न भाये तो क्यू मुझे ससुराल में मुश्किल होगी
भैया तो था पढाई में दब्बू फिर भी उसको थे मिलते गिफ्ट
में तो हर बार ही अव्वल आती फिर भी क्यू कभी शाबाशी मिली नहीं .??

मेरा भी दिल करता में भी पढू और सिखु कुछ अलग
लेकिन कह दिया गया तेरी शादी में करेंगे सब खर्च
भैया की इच्छा न थी फिर भी उसे भेजा पढने लन्दन
उसकी इस नाकामी पे भी दोष मेरी कुंडली में ही आया नज़र..??

भाई पे भारी है ये कहके मुझे हमेशा ताना दिया
दादी ने न कभी मुझे भैया जितना एक बार भी स्नेह दिया
दादा जी ही थे जो मुझे चाहते थे, करते थे वो मेरी बड़ाई
लेकिन यहाँ भी दादी मेरी उनको कहती न बिगाड़ो इसे

आखिर तो ये अपनी नहीं, है ये तो हमेशा से पराई है ..!!
जाना है इसे दूजे घर और सिखने है उनके रीति रिवाज़
रहने दो इसे ऐसे ही न चढ़ाव इसे अपने सर पे सरकार
पर उस पल तो में थी न उनकी अपनी.. छोटी सी नन्ही सी जान
फिर क्यू शादी के पहले ही पराया कर दिया था तुमने मुझे माँ..??

ये ही कुछ सवाल है मेरे मन में जो कई सालो से उठते है
नहीं इनका मतलब कोइ पर फिर भी दिल में बहुत ये चुभते है
कोई न दे सकेगा इन् सवालों का मुझको जवाब ये जानती हु में
फिर भी माता - पिता से एक बार पूछना चाहती हु में....
क्यू हु में आपके लिए पराई जब आपके ही खून से बनी हु में …????

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Thursday, April 7, 2011

Darta hoon main - Gaurav Mani Khanal


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डरता हु मैं
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कहता नहीं किसी से,
डरता हु 
मैं
 आपने आप से,
नहीं बोलता हु 
मैं
 आपने ही दिल से,
डरता हु मैं इस दिल की चाहत से,

मन तो बहुत करता है बनाऊ कोई  दोस्त,
पर डरता हु 
मैं
 दोस्त की बेवफाई से,
नही बोलता हु 
मैं
 किसी अनजान से,
डरता हु किसी को आपना बनाने से,

प्यार नही करता किसी से,
डरता हु दिल टूटने के दर्द से,
नही जानता विश्वास का मतलब,
डरता हु इस दगाबाज़ ज़माने के चालो से,

नही चाहता मुस्कुराना है,
डरता हु हँसी के पीछे छुपे गम से,
नही जानता जीतना मै,
डरता हु हार के लम्बे हाथो से,

खुल के जीना भूल गया है,
डरता हु काल की मार से,
भूल गया जिंदगी के मायने मै,
डरता हु आने वाले कल के भार से,

भावहीन है चेहरा मेरा,
डरता हु कोई पढ़ ना ले डर को मेरे,
शब्द नही है मेरे मन के कोष मे,
डरता हु मन की वेदना किसी को कहने से,

डरता हु मै हार पल के बदलाव से,
जीवन परिवर्तन के सिधांत से.....

~ गौरव मणि खनाल~
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