Friday, December 17, 2010

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में - राम भजन

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        मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..


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ठुमक चलत रामचंद्र जी - Thumak Cahalat Ramchandra ji


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ठुमक चलत रामचंद्र
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ..

किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय .
धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां ..

अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि .
तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां ..

विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर .
सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां ..

तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद .
रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ..
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श्री राम के भजन - Shree Ram Ke Bhajan

_______श्री रामचन्द्र कृपालु_______


श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् .
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् .. १..

कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् .
पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् .. २..

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् .
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् .. ३..

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् .
आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् .. ४..

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् .
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् .. ५..
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Wednesday, December 15, 2010

यादें - नितिन Yaadein _ Nitin

यादें
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चला जऊँगा इस जहाँ से,
आंसूं छोड़ जऊँगा|
सराहा जिन चंद दिलों ने ,
बेदर्द मैं उन्हें तोड़ जऊँगा |

तड़पा था साडी ज़िन्दगी
तड़प अब भी बाकी थी |
ख्वाहिशें जोह रहीं अदूरी हमेशा,
ख्वाहिशें वोह अब भी बाकी थी|.

मोहब्बत और हिम्मत मिली बहुत,
उनके भीड़ में ही अक्सर घिरा रहा,
पर मजबूर , बेबस, बदनसीब था मैं ,
तन्हा ही ता-उम्र मैं जीता रहा |

थक - हार गया जो हालातों से,
मौत को तो खुद ही मैं अपना रहा ,
चाहत वर्ना जीने की तो,
सदा ही बाकी थी.

 
नाकामी  हो गयी मुझ पर हावी  jo
सांसे लेना भी जैसे हो गया भारी  हो.
खुश सबको देखना चाहता था
पर गम ही सबको दिए जाता रहा..



 अपनों से शुरू होती थी ज़िन्दगी मेरी,
और ख़त्म भी होती थी जिन पर.
ऐसे सच्चे ,शरीफ  इंसानों को,
जल्लाद मैं अधर  में छोड जऊँगा


सफ़र ज़िन्दगी का अब
जो अब मैं ख़त्म  कर रहा हूँ
न जाने किन किन दिलों में
मैं यादें छोड जऊँगा |

ख्वाब ख़ुशी के लाया था
यादें हादसों की ले जऊँगा
वफायें  निभाई  संग जिनके 
जफ़ाएं उनकी संग ले जऊँगा



चला जऊँगा  इस जहाँ से ,
आंसूं छोड जऊँगा
सराहा जिन चंद दिलों
बेदर्द मैं उन्हें तोड़ जऊँगा 

__ नितिन कुमार  

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