___________________________________
झुलसाता जेठ मॉस
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकंचो में सिमटा जग
किन्तु विकल प्राण विहाग
धरती से अम्बर तक
गूँज मुक्ति गीत्गाया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पलछिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
___________________________________
No comments:
Post a Comment