Tuesday, March 26, 2013

Aadhunik - Vaisshali S Behani

आधुनिक
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बदल रहा है दौर सारा ,
सब कुछ है बदला -बदला सा ,
नया ज़माना नए है रंगरूप ,
नया चलन है बहुरूप !



बोल चाल का ढंग बदला,
सोच विचार का रूप बदला,
क्या बदला है स्वरुप माँ का?
क्या बदली है ममता उसकी ?



क्यों न ममता आधुनिक हो जाये ?
क्यों अब भी रोये-चिल्लाए ?
क्यों वो दे कुर्बानी खुद की ?
क्यों वो हरपल नीर बहाए ?
क्यों न वो आज़ाद हो जाये ?



संतान अब तक बदली बदली
क्यों न अब ममता बदल जाये ?
संतानों की हर एक गलती पर
क्यों न अब वो सबक सिखाए ?



मुख मोड़ती थी संतान अब तक,
क्यों न माँ यह चलन अपनाये ?
हो जाये गर स्वार्थी माँ तो,
क्या हमे यह स्वीकार होगा ?



आधुनिकता के इस दौर में ,
माँ की है वही कहानी।
बदला कहाँ है ज़माना यारों
ममता अब भी है पुरानी।।

~~ वैशाली बहानी ~~

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Saturday, March 16, 2013

Videsh - Mamta

 
विदेश
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 क्या गुजरती उन पे है ,तुम छोड़ जाते हो जब अकेला
टीस सी उठती है मन में ,ज्यों केला हो ये मेला
बूढी आँखें सुख- व् -दुःख में ,गीली हो -हो सूख गईं
पुत्र प्रेम की वो डोर जपते -पते चूर हुई




कोई आता अपने मन के भाव भर वो ैलियों में
भेजते हैं दूर देश प्रेम मन का थैलियों में
अश्रु पूर्ण आँखों से चुन - चुन कर तेरी रुचियाँ
माँ भरती मुट्ठी में भेजती तुझको है खुशियाँ




फ़ोन पर सुन तेरी बातें ,चाहती छिपाना भाव
शक ना हो तुझे कोई झेल जाती है वो घाव
यूँ ही लड़ झगड़ के वो काटते है अपनी शाम
क्यों हमने सींचे बाग़ क्यों हमने रोपे आम




बेटा तू छोड़ - छाड़ जा अब यहाँ ही
हमें क्यों बुला है रहा घर अपना यहाँ ही
पर बेटा गया जो है आएगा कहाँ वापिस
वह तो सुख की दुनियाँ,दुःख से क्या हासिल




अपने बच्चे अपनी बीवी ,माँ की जगह टीवी
सुख -सुविधा धन - माया ,सब की यहीं वीथी



पलक पांवड़े बिछाये ,दिन बीते रात जाएँ



बेटा - बहू गए जो हैं लौट के शायद वो आयें ................
 


मता

Manali - Dharam Singh Thakur

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मनाली 
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तुँग-श्रृँग से घिरी
शस्य-श्यामला भरी,
दिव्य,अलौकि धाम यह
पावन’मनु’ की स्थली।

नैसर्गिक हिम श्रृंखलायें धवल
निस्तब्ध अंजुल सुर भू तल,
शिखरों पर हिम रूप निरन्तर
संचित विशाल जलधि जल।

मूल मनुष्य का जगती के
मनाली पौराणिक ऋषि संगम,
व्यास की गूँजे ऋगवेद वाणी
प्रथम विधि ज्ञान का उद्दगम।

विश्व पर्यटन व्योम में
यह चमचमाती चन्द्रिका,
मनु और व्यास की
विश्व कीर्ति पताका यहाँ।।

ऋगवेद दात्री तपोभूमि का
गौरव इतिहास दबा पड़ा,
विश्व गौरव का दिव्य ‌पुञ्ज
अपेक्षित मनु मन्दिर खड़ा।

मनु की मनाली में
‘मनालसु’ की धवल धारा,
इस धारा के तट से उपजा
मानवता का जग सारा।

मनमोहक उपयोगी प्राणाधार
तट पर सुन्दर वन-उपवन,
देव-मानव-दानव सबको
अर्पित करता तन-मन-धन।

~~ धरम सिंह ठाकुर ~~ 
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Prayatna - Abhishek Gupta

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 प्रयत्न
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मंजिले खोयी नहीं जाती, धुंधलाती रोशनी-ए-मशालो में ,
इश्क भुलाया नहीं जाता, साकी के पैमानों में |
समुद्र का सूरज तो रोज पानी में डूब के भी ऊपर आता है
क्यूंकि जिंदगी हारी नहीं जाती, उम्र के ढलालो में ||

उमीदे टूट जाती है विलापो से, ख़ुशी के ठहाको से नहीं ,
जंग जीती जाती है वफ़ा से, सैन्य लड़ाको से नहीं |
चक्रव्यूह के दरवाजो पर चाहे बैठा दो, दस महारथी,
भेदने से थमते नहीं, अर्जुन के बेटे इनके प्रहारों से नहीं||

सब कुछ हार गए तो क्या, क्यूँ तुम निराश हो |
सृष्टि थी समाप्त, जब जग था पूर्ण जल मग्न ,
क्या हारे थे मनु, भूल कर पुनःसृजन का स्वप्न,
उठो, स्मरण रहे मनु पुत्र हो तुम , तुम मनुष्य हो ||

शत प्रयत्न असफल हुए; तो क्या , तुम नही असफल हो |
भागीरथ रुक जाते, तो वंचित रह जाता जग भागीरथी के अवतरण से|
बुझते दिए की लौ भी आंखिरी सांस चीख के लेती है,
छोड़ असफलता का मोह, मनुज, अनिराश तू फिर प्रयत्न कर ||
 
 
 ~~ अभिषेक गुप्ता ~~ 
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