Monday, January 7, 2013

Chutki Bhar Aansu Aur Mutthi Bhar Khushi - Devendra Sharma


 चुटकी भर आंसू और मुठ्ठी भर ख़ुशी ;
__________________

थोड़े से अरमाँ , ख्वाहिशें नयी ;
सितारों की चाहत है किसको यहाँ ;
लकीरों से ज्यादा है माँगा कहाँ ;
सुलगते मनुजमन के अरमाँ यही;
चुटकी भर आंसू और मुठ्ठी भर ख़ुशी॥
परश्तिश बुतों की हैं करते वही ;
लकीरों से नाखुश जो रहते सदा ;
वीरानी राहें डराती उन्हें ;
सरलतम सफ़र चाहे फूलों भरा ;
मगर उनको मिलता है अक्सर वही ;
चुटकी भर आंसू और मुठ्ठी भर ख़ुशी ॥

- देवेन्द्र शर्मा -
__________________

Kuch desh ki bhi sudh le - Mamta Sharma


 " कुछ देश  की  भी  सुध   लें " 
_________________

  हे विघ्न विनाशक गणपति मुझको  कुछ ऐसी दो मति
इतना  तो में भी कर सकूं इस देश में सुख को भर सकूं 

हाँ है मुझे इतना पता संकल्प मेरा है बड़ा 
पर क्या करूँ जो है जमीं , उसमें ही पनपी है कमी 

कैसे इसे मैं  दूँ ईमान, दूँ धर्म का इतना सा दान 
के आदमी हो आदमी, पशुता हटे इंसान की 

कैसे हो हम में एकता संचार हो बस प्रेम का 
क्यों  ना हो हम में चेतना ,मानव में हो संवेदना 

क्यूँकर हमारी ये धरा फैलाए जग में वो  नशा 
जो  नशा हो बस प्रेम का आधार में हो बल खड़ा 

ले आयें हम वो फिर से पल ,  हो इस जहाँ में हम ही हम  
हम हर तरफ हों उड़ रहे , सोने की चिड़िया फिर बने 

इंसानियत की शान हों , ब्रह्माण्ड की हम आन हों 
कम कर सकें हम वेदना , हों हम जगत की प्रेरणा 

ममता शर्मा
_________________