Sunday, June 26, 2011

Adhoori chahat - Ankita Jain

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अधूरी चाहत
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आज फिर वो मेरे ख्वाबों में आया,
आज फिर उसने मुझे नींद से जगाया !
जाने कब होंगे ख़तम ये सिलसिले उसकी आहट के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!

कायल था जो कभी मेरी मगरूम मोहब्बत का,
लफ्ज़-ए-बयां कराती थी उसे अहसास ज़न्नत का !
पर जाने कब बदले ये सिलसिले उस सुकून और राहत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !!

नहीं है नाता अब कोई, मेरा और उस परछाईं का,
फिर अब भी क्यूँ हैं वो शहज़ादा मेरे ख्वाबों और तन्हाई का !
जाने कब हटेंगे काले बदरा उस बेरहम शराफत के,
जाने कब होंगे सपने पूरे उस अधूरी चाहत के !! 

अंकिता जैन "भंडारी"
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Kya hum Kamzor hai - Ankita jain

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"क्या सच में हम कमज़ोर हैं"
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मिलाकर हाथ जब खड़े थे हम,
गोरों की सेना से लड़े थे हम !
सीमा के बहार उन्हें खदेड़ा था,
जतलाया था उन्हें की "हिन्दुस्तान" न तेरा था !!

तो फिर क्यूँ आज हम कमज़ोर हैं,
क्यूँ पाले हमने अपने ही घर में चोर हैं !
किसको पता था की कलयुग का चरखा एसा चलेगा,
माँ का अपना लाल ही उसका कातिल बनेगा !!

हम ही तो ज़िम्मेदार हैं इन काले अंग्रेजों की उत्पत्ति के,
आज नहीं रहे हकदार हम अपनी ही संपत्ति के !
न बिगड़ा है कुछ जगा लो अपने दिल में गाँधी और भगत आज,
और उतार कर हाथों की चूड़ियाँ गिरा दो अन्याय पर गाज !!

~~ अंकिता जैन ~~